India News (इंडिया न्यूज), Aurangzeb Temple Destruction: औरंगजेब का मंदिरों को तोड़ने का आदेश किसी खास मंदिर या क्षेत्र तक सीमित नहीं था। उसने अपने शासन के अंतर्गत आने वाले सभी 21 प्रांतों के राज्यपालों को पत्र लिखकर मंदिरों को तोड़ने के साथ-साथ हिंदुओं द्वारा संचालित शिक्षण संस्थानों को भी बंद करने को कहा था। उसने इस्लाम के प्रचार के लिए मूर्ति पूजा बंद कर देने को ही काफी नहीं समझा। उसने हिंदू त्योहारों और रीति-रिवाजों पर भी प्रतिबंध लगा दिया। उसने उनकी हर आस्था को ठेस पहुंचाई। उसे हिंदू शिक्षण संस्थानों से शिकायत थी कि वहां झूठी किताबें पढ़ाई जाती हैं। उसने सिर्फ आदेश जारी करके चुप नहीं बैठा रहा। वह इसके क्रियान्वयन की जानकारी भी लेता रहा।

हालांकि, मंदिरों के ध्वस्त होने के बाद भी हिंदू उनके खंडहरों के बीच पूजा करते रहे। सत्रहवीं सदी के आखिरी दिनों में उसने गुजरात के राज्यपाल को लिखा कि अगर काफिरों ने सोमनाथ में पूजा करना जारी रखा है तो उसे इस तरह से ध्वस्त कर दें कि उसका कोई निशान न बचे।

शुरू में नए मंदिरों पर प्रतिबंध का दिखावा किया

इस्लाम को राज्य धर्म घोषित करने और शरीयत के अनुसार शासन करने के औरंगजेब के फैसले के बाद काफिर (हिंदू), उनके पूजा स्थल, शिक्षण संस्थान और त्यौहार सभी निशाने पर थे। प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने औरंगजेब के विश्वासपात्र मुस्तैद खान की पुस्तक “मासिर-ए-आलमगीरी” के हवाले से लिखा है कि शुरू में उसने काफिरों के नए मंदिरों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का दिखावा किया था।

उसने शरीयत के निर्देश को दोहराया था कि लंबे समय से मौजूद मंदिरों को नहीं तोड़ा जाना चाहिए, लेकिन नए मंदिरों को बनाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। दूसरी ओर, 28 फरवरी 1659 के उसके फरमान में पुराने मंदिरों की मरम्मत पर प्रतिबंध और कटक और मेदनीपुर के बीच के गांवों और कस्बों में पिछले दस-बारह वर्षों में बने सभी मंदिरों को गिराने का आदेश था।

मंदिर तोड़ो, हिंदुओं का दमन करो

8 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने इस कड़ी में दूसरा कठोर आदेश जारी किया। थानों के पुलिस अधिकारियों, मुसद्दियों, कोरोरियों और गुमाश्तों को संबोधित करते हुए लिखा कि काफिरों के सभी शिवालय और मंदिर तोड़ दिए जाएं और उनकी धार्मिक प्रथाओं का दमन किया जाए। मराठों, जाटों और सिखों के विरोध के बीच उसका रवैया और भी कठोर हो गया। वह मानने लगा कि मंदिर और हिंदू शिक्षण संस्थान काफिरों के संघटन और प्रचार के केंद्र हैं, जो उसके शासन के लिए खतरा और इस्लाम के विस्तार की राह में बाधा हैं। औरंगजेब के रवैये ने अधीनस्थ अधिकारियों और एजेंटों को मनमानी और ज्यादतियों की खुली छूट दे दी। मंदिरों को तोड़ने का काम इतना बड़ा था कि इसके लिए एक अलग विभाग खोलना पड़ा।

सोमनाथ, विश्वनाथ, केशवराय सभी निशाने पर

काठियावाड़ का प्रसिद्ध और प्राचीन सोमनाथ मंदिर, बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवराय मंदिर औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त कर दिए गए। बनारस के विश्वनाथ मंदिर को नष्ट करने का औरंगजेब का पहला आदेश 8 अप्रैल 1669 को जारी हुआ था। 2 सितंबर 1669 को इस सिलसिले के उसके दूसरे आदेश के बीच के पांच महीनों में विश्वनाथ मंदिर को लगातार नष्ट किया गया।

उसे बनारस से खास दुश्मनी थी। इसकी एक वजह उसके प्रतिद्वंद्वी भाई दारा शिकोह का इस जगह से जुड़ाव और वहां संस्कृत और हिंदू दर्शन का अध्ययन करना था। हालांकि इस समय तक उसने दारा को मार दिया था, लेकिन औरंगजेब इस बात से परेशान और नाराज था कि उसके बाद भी वहां के शिक्षण संस्थानों में दूर-दूर से हिंदू और मुसलमान दोनों आते हैं और वहां गलत शिक्षा दी जाती है।

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मंदिर ही नहीं तोड़ा, पूजा भी बंद कर दी

औरंगजेब के प्रति उदार दृष्टिकोण रखने वाले लोग दारा के बनारस से जुड़ाव और वहां से उसे मिलने वाले हिंदू समर्थन को भी बनारस के प्रति उसके गुस्से का एक कारण मानते हैं। लेकिन देशभर में मंदिरों के प्रति उसकी नाराजगी को देखते हुए यह कारण बेबुनियाद लगता है। औरंगजेब बनारस तक ही नहीं रुका। उसने मथुरा में केशवराय मंदिर को ही नहीं तोड़ा, मथुरा का नाम बदलकर इस्लामाबाद भी रख दिया। उसने 1665 में पहली बार सोमनाथ मंदिर को तोड़ने का आदेश दिया और फिर वह यह पता लगाता रहा कि क्या हिंदू अब भी वहां पूजा कर रहे हैं। जयपुर के पास मलरीना मंदिर, अहमदाबाद में चिंतामणि मंदिर, बड़नगर में हृदयेश्वर मंदिर, उदयपुर में झील किनारे तीन मंदिर, सवाई माधोपुर में मलासा मंदिर, उज्जैन और उसके आसपास के इलाकों में कई मंदिर, कूच बिहार, उदयपुर, जोधपुर, गोलकुंडा, बीजापुर और महाराष्ट्र में कई मंदिर उस बड़ी सूची का एक छोटा सा हिस्सा हैं, जहां औरंगजेब के आदेश पर मंदिरों को खंडहर में बदल दिया गया था।

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मस्जिद के फर्श और सीढ़ियों पर टूटी हुई मूर्तियाँ

औरंगजेब ने अपने वफादार राजपूत दोस्तों के इलाकों में भी कोई रियायत नहीं की। आमेर राज्य उसके पूर्वजों के समय से ही मुगलों के प्रति वफादार था। लेकिन जून 1680 में उसने आमेर के सभी मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया। 1674 में गुजरात में हिंदुओं को धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए दी गई जमीनें जब्त कर ली गईं। मुस्तैद खान ने अपनी किताब “मासिर-ए-आलमगीरी” में लिखा है कि खान-ए-जहाँ मंदिरों के विनाश के बाद जोधपुर से लौटते समय कई गाड़ियों में टूटी हुई मूर्तियाँ लेकर आया था।

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बहुत खुश औरंगजेब ने आदेश दिया कि इसमें मौजूद सारा सोना, चांदी, पीतल और पत्थर जामा मस्जिद के चौक और सीढ़ियों पर रख दिया जाए ताकि उन्हें पैरों तले रौंदा जा सके। मुस्तैद खान के अनुसार बादशाह के धर्म की ताकत और उस पर अल्लाह की रहमत देखकर हिंदू राजा दंग रह गए और मूर्तियों की तरह दीवार की ओर मुंह करके खड़े हो गए।

औरंगजेब हिंदू धर्म से ही नहीं बल्कि हिंदुओं से भी बड़ी शिद्दत के साथ नफरत करता था। औरंगजेब ने ही हिंदू सम्राट संभाजी महारज केए आंखे फुड़वा दी थीं।