India News (इंडिया न्यूज), Story of Late Manmohan Singh Ji: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ ने 2014 में भारतीय राजनीति में तहलका मचाया था। इस किताब में संजय बारू ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने से लेकर उनके कार्यकाल की कई महत्वपूर्ण घटनाओं और पहलुओं पर प्रकाश डाला है, जिससे सियासी गलियारों में खलबली मच गई थी।

मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना: एक संयोग या रणनीति?

संजय बारू ने अपनी किताब में मनमोहन सिंह को ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ बताया था। इसका मतलब था कि मनमोहन सिंह का प्रधानमंत्री बनना एक संयोग था, जो पूरी तरह से उनके नियंत्रण में नहीं था। जब 2004 में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, तो सोनिया गांधी कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनाने के लिए सबसे आगे थीं। हालांकि, सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था, जिसके बाद कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में प्रस्तावित किया।

संजय बारू ने यह भी उल्लेख किया कि मनमोहन सिंह का चयन इस कारण किया गया था क्योंकि उस वक्त आर्थिक सुधारों के समर्थक के रूप में उनका चेहरा सबसे अधिक स्वीकार्य था। बारू ने लिखा, “सोनिया गांधी ने खुद उनका नाम प्रधानमंत्री के तौर पर आगे बढ़ाया, और कांग्रेस कार्यकर्ताओं से समर्थन की अपील की।”

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संजय बारू की किताब में ‘सिंह इज किंग’ से ‘सिंह इज़ सिंग’ तक

संजय बारू ने अपनी किताब में यह भी बयान किया कि उनका कभी किताब लिखने का कोई इरादा नहीं था। उनका कहना था कि जब वे प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) में थे, तो उन्होंने किसी प्रकार की डायरी या किसी अन्य दस्तावेज़ का लेखन नहीं किया था। हालांकि, बारू ने यह स्वीकार किया कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाओं के नोट्स ज़रूर बनाए थे।

उन्होंने यह बताया कि 2008 में जब उन्होंने पीएमओ छोड़ा, तो मीडिया में मनमोहन सिंह की छवि ‘सिंह इज किंग’ की थी, लेकिन चार साल बाद 2012 में वही मीडिया उन्हें ‘सिंह इज़ सिंग’ कहने लगी। बारू के अनुसार, यह छवि में गिरावट का स्पष्ट संकेत था।

मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दो पहलू

किताब में संजय बारू ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यकाल को दो भागों में बांटा है। पहला कार्यकाल जहां उन्होंने सुधारों को आगे बढ़ाया और सही दिशा में काम किया, वहीं उनका दूसरा कार्यकाल वित्तीय घोटालों और बुरी खबरों से घिरा रहा। बारू का कहना था कि दूसरे कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह ने राजनीतिक नियंत्रण खो दिया, जिससे उनके प्रधानमंत्री कार्यालय का प्रभाव और कामकाजी शैली कमजोर हो गई।

संजय बारू ने यह भी आरोप लगाया कि मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में सरकार ने कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर स्पष्ट दिशा नहीं दी, जिसके कारण उनकी छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। साथ ही, उनका कहना था कि प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) का असरहीन होना भी इसके कारण था।

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सोनिया गांधी और मनमोहन सिंह के रिश्ते

किताब में यह सवाल भी उठाया गया कि मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के रिश्ते कैसे थे। बारू ने बताया कि वह दोनों के बीच कोई वैचारिक या नीतिगत संघर्ष नहीं था, लेकिन मनमोहन सिंह को सोनिया गांधी के नेतृत्व में काम करने में मुश्किलें आईं, खासकर जब गांधी परिवार के एजेंडे से उन्हें दूरी बनानी पड़ी। 2011-12 के बाद, मनमोहन सिंह ने अपनी सरकार की नीतियों पर पूरी तरह से जोर दिया और गांधी परिवार के प्रभाव को कम करने का प्रयास किया।

‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की राजनीतिक प्रतिक्रिया

संजय बारू की किताब ने जहां एक ओर मीडिया और पाठकों में हलचल मचाई, वहीं कांग्रेस पार्टी ने इसका कड़ा विरोध किया। पार्टी ने बारू के आरोपों को खारिज करते हुए कई तथ्यों को पेश किया और कहा कि मनमोहन सिंह का चयन इसलिए किया गया था क्योंकि वह उन दिनों आर्थिक सुधारों के समर्थक थे और देश के विकास के लिए उनकी नीतियां सबसे अधिक स्वीकार्य थीं। कांग्रेस ने इस किताब को ‘व्यावसायिक लाभ कमाने की मंशा’ का परिणाम बताया और प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) ने भी इस पर नाराजगी जाहिर की थी।

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निजी कारणों से पीएमओ छोड़ना

संजय बारू ने अपनी किताब में यह स्पष्ट किया कि उन्होंने प्रधानमंत्री कार्यालय कुछ निजी कारणों से छोड़ा था। हालांकि, बारू ने यह भी कहा कि उन्होंने किताब में उन कारणों का खुलासा नहीं किया।

संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ ने मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने और उनके कार्यकाल के कई पहलुओं को उजागर किया है। इस किताब के माध्यम से बारू ने न केवल प्रधानमंत्री के रूप में उनकी उपलब्धियों और असफलताओं का वर्णन किया, बल्कि उनके और गांधी परिवार के बीच के संबंधों को भी सामने लाया। इस किताब ने भारतीय राजनीति में एक नया दृष्टिकोण पेश किया और यह सवाल खड़ा किया कि क्या मनमोहन सिंह को वास्तव में एक मजबूत प्रधानमंत्री माना जा सकता है, या वे केवल एक सत्ता संघर्ष के परिणामस्वरूप प्रधानमंत्री बने थे।