India News (इंडिया न्यूज),Nepal:बांग्लादेश और पाकिस्तान के बाद अब नेपाल में चल रहे राजनीतिक खेल पर चीन की नज़र है. चीन ने इसकी पटकथा भी लिखनी शुरू कर दी है. रविवार को चीन ने इस खेल की कमान नेपाल की पूर्व राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी को सौंप दी है. दरअसल, अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के लिए बीजिंग आईं भंडारी को चीन ने एक नया काम सौंपा है. कांतिपुर मीडिया के मुताबिक, चीन ने भंडारी से नेपाल की सभी कम्युनिस्ट पार्टियों को एकजुट करने को कहा है. चीन का कहना है कि जब तक नेपाल में सभी कम्युनिस्ट पार्टियां एकजुट नहीं होंगी, तब तक उसका उत्थान नहीं हो सकता।

विद्या देवी भंडारी चीन के दौरे पर क्यों हैं?

राष्ट्रपति पद छोड़ने के 2 साल बाद विद्या देवी भंडारी फिर से राजनीति में सक्रिय हो रही हैं. भंडारी केपी शर्मा ओली की पार्टी से हैं. ओली फिलहाल प्रधानमंत्री हैं, लेकिन उम्र के चलते पार्टी के अंदर ही उनके खिलाफ विरोध है. भंडारी इसी जगह को भरने की कोशिश कर रही हैं. नेपाल में 2027 में आम चुनाव होने हैं, जिसमें नई सरकार का गठन होना है. भंडारी की नजर अगले प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। कहा जा रहा है कि इसी के मद्देनजर भंडारी ने बीजिंग का दौरा किया है।

दरअसल, यूएमएल की अंदरूनी राजनीति में चीन को ज्यादा तरजीह मिलती रही है। नेपाल चीन का पड़ोसी देश है और यहां भी कम्युनिस्ट विचारधारा का काफी प्रभाव है।

क्यों हो रही है कम्युनिस्ट एकता की मांग?

नेपाल में 3 बड़ी कम्युनिस्ट पार्टियां हैं। पहली, केपी शर्मा ओली की अध्यक्षता वाली सीपीएन (यूएमएल)। दूसरी, पुष्प कमल दहल प्रचंड की अध्यक्षता वाली माओवादी सेंटर और तीसरी माधव कुमार नेपाल की अध्यक्षता वाली सीपीएन (एकीकृत)।

माधव कुमार और प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। दोनों की पहचान नेपाल की राजनीति में दिग्गज नेताओं के तौर पर है। दोनों का ही मजबूत राजनीतिक समर्थन आधार भी है। नेपाल में कम्युनिस्ट एकता के पीछे 3 बड़ी वजहें हैं-

1. नेपाल में फिलहाल सीपीएन (यूएमएल) और कांग्रेस पार्टी की सरकार है। कांग्रेस का झुकाव भारत की तरफ है, जिसकी वजह से नेपाल में चीन की असली मंशा पूरी नहीं हो पा रही है। मौजूदा शासन में नेपाल में चीन की BRI परियोजना की गति भी धीमी है।

2. नेपाल में राजशाही आंदोलन के कारण कम्युनिस्ट पार्टी की जड़ें भी हिल गई हैं। कहा जा रहा है कि राजशाही आंदोलन के जरिए भविष्य में नेपाल में दक्षिणपंथी दलों का दबदबा बढ़ सकता है। ऐसे में नेपाल में चीन का भविष्य अंधकारमय हो सकता है।

3. अगर नेपाल में तीनों कम्युनिस्ट पार्टियां एकजुट हो जाती हैं तो यहां किसी अन्य पार्टी के सत्ता में आने की संभावना फिलहाल लगभग नगण्य है। चीन इन तीनों पार्टियों को मिलाकर आसानी से सरकार चलाने की कवायद में लगा हुआ है।

हरियाणा वासियों के लिए खुशखबरी : नई रेलवे लाइन और एचओआरसी के निर्माण से यात्रियों को मिलेगी राहत, किसानों की भी होगी बल्ले-बल्ले जमीनों के बढ़ेंगे दाम

भारत ने रोका पानी तो पाकिस्तान में मच गया हाहाकार, आतंकिस्तान में आने वाली है प्रलयकारी मुसीबत, अब क्या करेंगे शहबाज-मुनीर?