India News(इंडिया न्यूज), NATO: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की के बीच जुबानी जंग ने दुनिया को चौंका दिया है। जेलेंस्की और डोनाल्ड ट्रंप कैमरे के सामने लड़ते नजर आ रहे हैं। वैसे तो कूटनीति की दुनिया में ऐसी बहसें होती रहती हैं, लेकिन बंद कमरों में नेताओं की द्विपक्षीय बैठकों के दौरान होती हैं, लेकिन व्हाइट हाउस में जो कुछ हुआ है, उसने डोनाल्ड ट्रंप के शासन में अमेरिका के सहयोगियों के विश्वास को हिला दिया है। खास तौर पर अब इसका नाटो पर गंभीर असर पड़ सकता है। नाटो एक सैन्य गठबंधन है, जिसमें अमेरिका का सबसे बड़ा योगदान है और डोनाल्ड ट्रंप अपने पहले कार्यकाल से ही नाटो में अमेरिकी फंडिंग को लेकर आक्रामक रहे हैं। 

पहले से खराब थे ट्रंप और जेलेंस्की के संबंध

बीबीसी के अंतरराष्ट्रीय मामलों के संपादक जेरेमी बोवेन ने लिखा है कि “ओवल ऑफिस में तकरार से पहले ही डोनाल्ड ट्रंप और वोलोडिमिर जेलेंस्की के बीच संबंध बहुत खराब थे। राष्ट्रपति ट्रंप उन्हें तानाशाह कह चुके हैं और उन्होंने कहा था कि यूक्रेन ने युद्ध शुरू किया, जो कि झूठ है।” उन्होंने कहा है कि “जो बाइडेन ने जिस यूक्रेन-अमेरिका गठबंधन को फंड किया था, वह अब टूटकर बिखर गया है।” जेरेमी बोवेन का मानना ​​है कि यूक्रेन-अमेरिका गठबंधन का सार्वजनिक रूप से टूटना नाटो के यूरोपीय सदस्यों और अमेरिका के बीच एक बड़े संकट का भी संकेत है।

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नाटो पर मंडरा रहा बड़ा संकट

डोनाल्ड ट्रंप और जेलेंस्की के बीच बहस ने यूरोपीय देशों को हिलाकर रख दिया होगा। यूरोप की सुरक्षा के लिए अमेरिका की दशकों पुरानी प्रतिबद्धता पर अब सवाल और संदेह उठेंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या राष्ट्रपति ट्रंप पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन द्वारा “1949 में किए गए उस वादे को पूरा करेंगे कि नाटो सहयोगी पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा।” यूरोपीय देशों के मन में सबसे बड़ी चिंता यह है कि डोनाल्ड ट्रंप रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ संबंधों को बहाल करने के लिए विपरीत दिशा में चल रहे हैं और इसके लिए वे न तो यूक्रेन की सुरक्षा का ख्याल रख रहे हैं और न ही यूरोप की।

ट्रंप ने जेलेंस्की पर बनाया ये दबाव

डोनाल्ड ट्रंप ने यूक्रेन पर समझौता करने का दबाव बनाया है। साफ शब्दों में कहा है कि अगर यूक्रेन समझौता नहीं करता है तो अमेरिका छोड़ देगा। उन्होंने यूक्रेन से ‘समझौता’ करने को कहा है और उनके शांति प्रस्ताव में रूस के खिलाफ लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों को हटाना भी शामिल है। इससे पहले यूरोपीय देशों में अमेरिका के प्रति इतना अविश्वास पहले कभी नहीं रहा। डोनाल्ड ट्रंप की सबसे बड़ी नाराजगी इस बात को लेकर है कि जेलेंस्की ने रूस को किसी भी तरह की रियायत देने से इनकार कर दिया। 

इसके अलावा, जेलेंस्की ने यूक्रेनी दुर्लभ खनिज संपदा पर डोनाल्ड ट्रंप के साथ हस्ताक्षर करने से भी इनकार कर दिया। डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका द्वारा यूक्रेन को अब तक दी गई सारी मदद वापस लेना चाहते थे और इसके लिए उनकी कोशिश यूक्रेनी खनिज संपदा के लिए समझौता करने की थी।

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किस ओर बढ़ रही अमेरिकी विदेश निति?

यह अमेरिका की विदेश नीति के लिए सबसे बड़ी परीक्षा है। यूक्रेन के लोगों का मानना ​​है कि, उनकी राष्ट्रीय सुरक्षा का अस्तित्व खतरे में है और पुतिन को अगर नहीं रोका गया तो वे किसी भी हद तक जा सकते हैं। यही वजह है कि जेलेंस्की बार-बार यूक्रेन की सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात के दौरान अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस ने हस्तक्षेप किया और उसके बाद बहस शुरू हो गई।

आपको जानकारी के लिए बता दें कि, राजनीतिक पर्यवेक्षक इसे एक सुनियोजित डकैती बता रहे हैं, जिसके तहत या तो जेलेंस्की को अमेरिका के निर्देशों का पालन करना होगा या फिर संकट को बढ़ाना होगा, जिसके लिए जेलेंस्की को ही जिम्मेदार और दोषी माना जाएगा। अगर जेलेंस्की अमेरिकी मदद के बिना भी युद्ध जारी रखने का फैसला करते हैं, तो सवाल यह होगा कि वे इस लड़ाई को कितने समय तक लड़ पाएंगे? ऐसे में यूक्रेन के यूरोपीय सहयोगियों पर दबाव रहेगा कि वे यूक्रेन की किस तरह मदद करते हैं? और सबसे बड़ा सवाल नाटो के भविष्य को लेकर होगा कि क्या उसका अस्तित्व बना रहेगा?

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