India News (इंडिया न्यूज), Donald Trump: डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से पूरी दुनिया में हलचल सी मच गई है। एक तरफ, जहां टैरिफ वॉर जारी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दूसरे देशों से आने वाले उत्पादों पर उस तरह का ही टैरिफ लगाने की बात कही है, जिस तरह वो दूसरे देशों पर लगाता है। इस बीच जो खबर आ रही है, वो बेहद चौंकाने वाला है। दरअसल अमेरिका दो दशक (करीब 17 साल) बाद ब्रिटेन में अपने परमाणु हथियार तैनात करने की योजना बना रहा है। एक तरफ यहां ट्रंप लगातार रूस-यूक्रेन युद्ध रोकने का प्रयास कर रहे हैं। दूसरी तरफ परमाणु हथियारों की तैनाती ने पूरी दुनिया को टेंशन में डाल दिया है।

रूस-यूक्रेन युद्ध को रोकने के राष्ट्रपति ट्रंप के प्रयासों के बीच इस रिपोर्ट का खुलासा चौंकाने वाला है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सैटेलाइट इमेज से पता चला है कि सफोक में RAF लैकेनहीथ बेस पर 22 परमाणु बंकरों को अपग्रेड किया गया है। इन बंकरों में भूमिगत चैंबर हैं, जिनमें से प्रत्येक में 4 परमाणु हथियार रखे जा सकते हैं।

क्या है इसके मायने?

आपको जानकारी के लिए बता दें कि, लैकेनहीथ बेस ब्रिटेन में अमेरिकी वायुसेना का सबसे बड़ा बेस है। और यूरोप के प्रमुख सैन्य ठिकानों में से एक है। यहां परमाणु क्षमता वाले F-15E स्ट्राइक ईगल और F-35A लाइटनिंग II फाइटर जेट के स्क्वाड्रन तैनात हैं। अमेरिका को जवाब देने के लिए रूस ने पश्चिमी हिस्से में कई परमाणु हथियार तैनात किए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिका के इस कदम से पश्चिमी देशों के परमाणु भंडार की सुरक्षा बढ़ेगी और रूस की सैन्य रणनीति पर असर पड़ेगा। फिलहाल इटली, तुर्की, बेल्जियम, नीदरलैंड और जर्मनी के एयरबेस पर करीब 100 अमेरिकी B61-12 बम रखे हुए हैं।

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क्या है इन बमों की क्षमता?

इन बमों की क्षमता 50 किलोटन तक है, जो हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 3 गुना ज्यादा शक्तिशाली है। अमेरिका ने 2021 में लैकेनहीथ की परमाणु क्षमता को फिर से सक्रिय करने का फैसला किया था। रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद इस योजना को और बल मिला है। नाटो के एक दस्तावेज से पता चला है कि ब्रिटेन के ‘विशेष हथियार’ स्थल को अपग्रेड की सूची में जोड़ा गया है। पेंटागन खरीद अनुबंधों ने भी लैकेनहीथ में एक नई सुविधा की योजना की पुष्टि की। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका करीब 20 साल बाद ब्रिटेन में अपना परमाणु मिशन फिर से स्थापित कर रहा है। माना जा रहा है कि यह कदम रूस के साथ बिगड़ते राजनीतिक और सैन्य संबंधों की प्रतिक्रिया है।

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