India News (इंडिया न्यूज), Donald Trump News: डोनाल्ड ट्रंप ने जब से अमेरिकी राष्ट्रपति पद की शपथ ली है, तब से अमेरिका की बेहतरी के लिए फैसले ले रहे हैं। अब उन्होंने एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की, जिसका नाम उन्होंने ‘गोल्डन डोम’ रखा है। इस योजना का उद्देश्य अमेरिका को मिसाइल हमलों से बचाने के लिए एक मजबूत सुरक्षा कवच तैयार करना है। यह कुछ हद तक उस एयर डिफेंस सिस्टम जैसा है जिसे इजरायल ने आयरन डोम कहा है। ट्रंप ने ओवल ऑफिस में संवाददाताओं से कहा, ‘पूरा होने के बाद गोल्डन डोम दुनिया के किसी भी कोने से या अंतरिक्ष से दागी जाने वाली मिसाइलों को रोकने में सक्षम होगा।’

पृथ्वी की कक्षा में छोटे उपग्रहों को किया जाएगा तैनात

इस योजना के तहत हजारों छोटे उपग्रहों को पृथ्वी की कक्षा में तैनात किया जाएगा। उपग्रहों का यह नेटवर्क आने वाली मिसाइलों का पता लगाने में सक्षम होगा। यह उन पर नजर रखने और प्रक्षेपण के तुरंत बाद उन्हें नष्ट करने में सक्षम होगा। ट्रंप ने कहा कि उनका लक्ष्य अपने कार्यकाल के अंत तक इस प्रणाली को पूरा करना है। इसके लिए अगले साल के बजट में 25 अरब डॉलर और कुल 175 अरब डॉलर खर्च होने का अनुमान है।

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ट्रंप ने क्या कहा?

ओवल ऑफिस से बोलते हुए ट्रंप ने कहा कि इस प्रणाली के डिजाइन को अंतिम रूप दे दिया गया है और इसका नेतृत्व अंतरिक्ष संचालन के उप प्रमुख जनरल माइकल गुएटलीन करेंगे। सेंटर फॉर स्ट्रेटेजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज में मिसाइल डिफेंस प्रोजेक्ट के निदेशक टॉम कराको ने इसे एक जरूरी कदम बताया। उन्होंने कहा, ‘अंतरिक्ष में युद्ध की आशंका के मद्देनजर गोल्डन डोम अमेरिका को मजबूत सुरक्षा प्रदान कर सकता है।’ हालांकि, यूनियन ऑफ कंसर्नड साइंटिस्ट्स की भौतिक विज्ञानी लॉरा ग्रेगो ने चेतावनी दी कि यह सिस्टम जटिल और महंगा है, और इसे आसानी से निशाना बनाया जा सकता है।

बढ़ सकती है लागत

गोल्डन डोम को नई तरह की मिसाइलों, जैसे हाइपरसोनिक मिसाइलों और फ्रैक्शनल ऑर्बिटल बॉम्बार्डमेंट सिस्टम से भी निपटना होगा। लागत को लेकर भी अनिश्चितता है। ट्रंप ने जहां 175 अरब डॉलर का अनुमान दिया, वहीं कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह लागत 161 से 542 अरब डॉलर तक हो सकती है, और इसे पूरी तरह बनने में दशकों लग सकते हैं। 1983 में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने भी इसी तरह की एयर डिफेंस सिस्टम का सपना देखा था, लेकिन सोवियत संघ के पतन से पहले यह पूरा नहीं हो सका। फिलहाल अमेरिका के पास छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलों को रोकने के लिए सिस्टम हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर लंबी दूरी की मिसाइलों को रोकना अभी भी एक बड़ी चुनौती है।

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