India News (इंडिया न्यूज), Mithi Town Pakistan: पाकिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों, खासकर हिंदुओं के साथ भेदभाव और हिंसा के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं। लेकिन असल में पाकिस्तान के संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए गए हैं और धर्म के आधार पर भेदभाव न करने का प्रावधान है। लेकिन पाकिस्तान में एक ऐसा कस्बा है जहां हिंदू और मुसलमान भाई-भाई की तरह रहते हैं। इस कस्बे का नाम मिठी है, जो पाकिस्तान के थारपारकर जिले में आता है। मिठी पाकिस्तान के उन चंद कस्बों में से एक है जहां मुसलमान अल्पसंख्यक हैं।

कौन है मिठी में 80% हिंदू

मिठी में 80 फीसदी आबादी हिंदू है। पाकिस्तान बनने के बाद से ही हिंदू और मुसलमान यहां भाई-भाई की तरह रहते हैं। यहां का सौहार्द ऐसा है कि यहां के हिंदू रमजान के दौरान खुशी-खुशी मुसलमानों को खाना-पानी देते हैं। ईद और दिवाली पर दोनों समुदाय एक-दूसरे को मिठाइयां देते हैं। मिठी में होली का त्योहार भी धूमधाम से मनाया जाता है। यहां होलिका दहन होता है, होली की पूजा की जाती है, ढोल पर पारंपरिक होली के भजन गाए जाते हैं। लोग रंगों से खेलते हैं। इतना ही नहीं मटकी फोड़ने के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। ठीक वैसे ही जैसे भारत में कृष्ण जन्माष्टमी पर मटकी फोड़ी जाती है।

मुसलमान गाय नहीं काटते

मिठी कराची से 278 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मिठी को 1990 में थारपारकर जिले का हिस्सा बनाया गया था। उस समय थारपारकर जिले को मीरपुर खास से अलग करके एक नया जिला बनाया गया था। यह एक खूबसूरत रेगिस्तानी इलाके में स्थित है। मिठी गुजरात के अहमदाबाद से 341 किलोमीटर दूर है। मिठी अपने नाम की तरह ही बहुत मीठी है। इस कस्बे में मुसलमान हिंदुओं के सम्मान में गाय नहीं काटते। मुसलमानों के सम्मान को देखते हुए हिंदू मुहर्रम के दौरान कोई शादी समारोह आयोजित नहीं करते। यहां अपराध दर दो प्रतिशत है। यहां कभी धार्मिक असहिष्णुता नहीं देखी गई।

हिंदू रोजा रखते हैं

डॉन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, जब एक रिपोर्टर की मुलाकात सिंध के एक व्यक्ति से हुई, जिसने अपना परिचय इस तरह दिया- “मैं सिंध में रहने वाला एक हिंदू हूं। लेकिन मैंने अपनी पूरी जिंदगी मुसलमानों के साथ गुजारी है। इसलिए हम रमजान के दौरान मुसलमानों के साथ रोजा रखते हैं। मुहर्रम के दौरान जुलूस का नेतृत्व हमारे हिंदू लड़के करते हैं, क्योंकि यह संस्कृति हमें सूफीवाद से मिली है। यहां हिंदू मुहर्रम के दौरान मजलिस का आयोजन करते देखे जा सकते हैं।

सांप्रदायिक सद्भाव कायम है

थार के एक मुस्लिम निवासी ने डॉन के रिपोर्टर से कहा, “हमारे गांव में दशकों से हिंदू और मुस्लिम एक साथ रह रहे हैं। ऐसा एक भी दिन नहीं बीता जब सांप्रदायिक सद्भाव के टूटने की खबर आई हो।” इस मुस्लिम व्यक्ति ने कहा, “जब हिंदू मंदिरों में पूजा करते हैं, तो अज़ान के लिए तेज़ आवाज़ में स्पीकर नहीं बजाए जाते। नमाज़ के दौरान मंदिरों में घंटियाँ बंद कर दी जाती हैं। रमज़ान के दौरान कोई भी खुलेआम खाना नहीं खाता और होली गांव के सभी लोग खेलते हैं।”

इसकी जमीन पर काला सोना

मीठी में भी विकास की बयार बहुत तेज़ बही है। थारपारकर जिले के सबसे विकसित कस्बों में मीठी की गिनती होती है। जिले के अलग-अलग हिस्सों से बड़ी संख्या में लोग यहाँ पहुँचे हैं। सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों के कारण यह जिले का केंद्र बन गया है। एक अधिकारी ने बताया कि इसकी भूमि में 175 बिलियन टन कोयले का भंडार है, जो दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा कोयला भंडार है।

अब हिंदुओं को छुट्टी मिलने लगी है

वैसे तो पाकिस्तान में हिंदू जहां भी मौजूद हैं, होली खेलते हैं। लेकिन इसे लेकर कोई खास धूमधाम नहीं है। क्योंकि पाकिस्तान के ज्यादातर इलाकों में हिंदुओं की संख्या बहुत कम है। इतना ही नहीं, पाकिस्तान में होली पर कोई सार्वजनिक अवकाश नहीं होता है। केवल उन हिंदू कर्मचारियों को छुट्टी दी जाती है। साल 2024 में पहली बार सिंध में होली के मौके पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की गई। उससे पहले साल 2020 में बलूचिस्तान में होली के मौके पर सार्वजनिक अवकाश की घोषणा की गई थी। आसान शब्दों में कहें तो होली पर छुट्टी होगी या नहीं, यह तय नहीं है। सरकार छुट्टी दे भी सकती है और नहीं भी। आजादी के बाद दशकों तक पाकिस्तान में होली की छुट्टी नहीं होती थी।

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