India News (इंडिया न्यूज), Work Hour: इंफोसिस के सह-संस्थापक एन नारायण मूर्ति के बाद लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) के चेयरमैन एमएन सुब्रमण्यन के ‘सप्ताह में 90 घंटे काम करने’ के बयान ने देश में नई बहस छेड़ दी है। हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, करीब 100 साल पहले भी लोग इतना काम नहीं करते थे, जब इंसान की औसत उम्र 21 से 37 साल के बीच थी। वेबसाइट एवरऑवर डॉट कॉम के मुताबिक, 1914 में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लोग औसतन सप्ताह में 55 घंटे काम करते थे। हालांकि, सैन्य उपकरणों की मांग को पूरा करने के लिए कुछ कर्मचारी पूरे सप्ताह में 72 घंटे या उससे अधिक काम करते थे। 

काम के घंटे बढ़ने से घट गई उत्पादकता

काम के घंटे लंबे होने की वजह से उनकी उत्पादकता घटती चली गई। आंकड़े बताते हैं कि, अगर कोई व्यक्ति सप्ताह में 40 घंटे काम करता है, तो उसकी उत्पादकता अपने उच्चतम स्तर पर होती है। इससे अधिक घंटे काम करने से उत्पादकता घटती है। इसका असर देश की जीडीपी पर भी पड़ता है। उत्पादकता बढ़ाने के लिए फोर्ड मोटर के संस्थापक हेनरी फोर्ड ने काम के घंटे घटाकर प्रतिदिन आठ घंटे (सुबह 9 से शाम 5 बजे तक) और सप्ताह में 40 घंटे करने का चलन शुरू किया था। 

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महामंदी के दौरान कुछ कंपनियों ने बढ़ाए थे काम के घंटे

हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, कुछ कंपनियों ने महामंदी के दौरान अपने कर्मचारियों से सप्ताह में 46-50 घंटे काम कराना जारी रखा, जिससे उनकी उत्पादकता प्रभावित हुई। इसके बाद कंपनियों ने काम के घंटे कम कर दिए और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद तो सप्ताह में औसतन 40 घंटे काम कराने का चलन लगभग स्थापित हो गया। इसके बाद यह चलन पूरी दुनिया में शुरू हो गया और आज कई देशों में कंपनियां कर्मचारियों से सप्ताह में चार दिन काम करा रही हैं।

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