India News (इंडिया न्यूज), India Kaladan Project : हाल ही में मोहम्मद यूनुस चीन की यात्रा पर थे, जहां उन्होंने चीन को बांग्लादेश में निवेश करने का न्योता दिया। इसके अलावा उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर भी बयान दिया। उनके बयान से साफ हो गया कि उनका निशाना सिलीगुड़ी कॉरिडोर है। आपको बता दें कि पश्चिम बंगाल का सिलीगुड़ी कॉरिडोर भारत के दूसरे शहरों को पूर्वोत्तर राज्यों से जोड़ता है। चीन की इस पर काफी समय से नजर है। सिलीगुड़ी कॉरिडोर 22 किलोमीटर चौड़ा और 60 किलोमीटर लंबा है।

अगर भविष्य में किसी वजह से यह रूट बाधित होता है तो भारत का पूर्वोत्तर से जमीनी संपर्क पूरी तरह से कट जाएगा। भारत को इस बात का डर हमेशा बना रहता है। चिकन नेक पर ड्रैगन की बुरी नजर के चलते भारत ने कलादान प्रोजेक्ट प्लान तैयार किया है। ताकि इससे चीन का मुकाबला किया जा सके।

क्या है भारत का कलादान प्रोजेक्ट?

चिकन नेक को सुरक्षित करने के लिए भारत के लिए कलादान प्रोजेक्ट काफी अहम है। कलादान एक मल्टी मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट है। यह एक ऐसा परिवहन मार्ग है जो कोलकाता को म्यांमार के सित्तवे बंदरगाह और मिजोरम से समुद्र, नदी और ज़मीन के ज़रिए जोड़ेगा। सित्तवे बंदरगाह से यह कालादान नदी के ज़रिए आगे बढ़कर सड़क मार्ग से होते हुए मिज़ोरम को ज़मीन के ज़रिए भारत से जोड़ेगा। इस परियोजना के पूरा होने के बाद भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने के लिए एक और वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध हो जाएगा। इस परियोजना को वर्ष 2008 में मंज़ूरी दी गई थी। भारत की तरफ़ से काम पूरा हो चुका है। म्यांमार में कुछ काम बाकी है।

भारत के लिए यह परियोजना क्यों महत्वपूर्ण?

रिपोर्ट्स के मुताबिक़, यह पूरी परियोजना कुल मिलाकर 900 किलोमीटर की है, जो भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को म्यांमार के ज़रिए भारत के बाकी हिस्सों से जोड़ेगी। इसके तहत कोलकाता से सित्तवे बंदरगाह तक 539 किलोमीटर की दूरी समुद्र के ज़रिए तय की जाएगी। उसके बाद सित्तवे से म्यांमार के पलेतवा तक 158 किलोमीटर की दूरी कालादान नदी के ज़रिए तय की जाएगी। उसके बाद यह परियोजना 129 किलोमीटर लंबी सड़क के जरिए भारत के मिजोरम के ज़ोरानपुई तक पहुंचेगी। ज़ोरानपुई से भारत तक 88 किलोमीटर लंबी सड़क लांगतलाई में खत्म होगी।

सेना को टैंकों की आवाजाही में होगा फायदा

इस परियोजना की खास बात यह है कि इस मार्ग पर बनाए जा रहे सभी पुल क्लास 70 के हैं। इस मार्ग पर कुल 33 छोटे-बड़े पुल हैं। जिनमें से 8 भारत में और 25 म्यांमार में हैं। ये सभी पुल खास तौर पर भारतीय सेना के टैंक, बख्तरबंद वाहन और दूसरे भारी उपकरणों का भार सहन कर सकते हैं। क्लास 70 का मतलब है कि 70 टन वजनी कोई भी सैन्य उपकरण आसानी से ले जाया जा सकता है। इस परियोजना के पूरा होने के बाद चिकन नेक को पार करके जमीन के रास्ते मिजोरम पहुंचने की दूरी 1000 किलोमीटर कम हो जाएगी।

जानकारी के लिए बता दें कि पिछले साल 6 अप्रैल को इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड ने म्यांमार के रखाइन प्रांत में कलादान नदी डेल्टा में सिट्टेव पोर्ट के संचालन का पूरा नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया था। इस बंदरगाह का विकास भारत ने म्यांमार के सहयोग से किया है।

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