India News (इंडिया न्यूज), COP 29 Conference: अजरबैजान के बाकू में COP 29 सम्मेलन का आयोजन किया गया। जिसमें जलवायु परिवर्तन को लेकर चर्चा की गई है। लेकिन अमेरका और चीन जैसे विकसित देश विकासशील देशों की एक नहीं सुनते हैं। अगर हम जलवायु परिवर्तन से निपटने की बात करें तो यह सिर्फ पर्यावरण का मुद्दा नहीं, बल्कि जीवन-मरण का सवाल है। यह कहने में कोई बुराई नहीं है कि वे मनमानी करते हैं। अब जब कार्बन उत्सर्जन और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पूरी दुनिया के सामने खड़ी है, तब भी इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। 

भारत जैसे विकासशील देशों का गला घोंट रहे चीन-अमेरिका

हम आपको जानकारी के लिए बता दें कि, कई मामलों में चीन और अमेरिका जैसे विकसित देश भारत जैसे विकासशील देशों का गला घोंटने की कोशिश कर रहे हैं। हाल ही में अजरबैजान के बाकू में आयोजित COP 29 सम्मेलन में 300 बिलियन डॉलर वार्षिक जलवायु वित्त का लक्ष्य रखा गया था, ताकि विकासशील देशों को मदद मिल सके। लेकिन यह समझौता भी विवादों में घिर गया। भारत ने इसे “ऑप्टिकल इल्यूजन” बताया और कहा कि इससे वास्तविक जलवायु समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता। दरअसल, विकासशील देशों ने इसके लिए कम से कम एक ट्रिलियन डॉलर (1000 बिलियन डॉलर) की मांग की थी। 

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COP 29 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

संयुक्त राष्ट्र के अंतिम आधिकारिक मसौदे के अनुसार, COP 29 का मुख्य उद्देश्य पिछली जलवायु वित्त योजना को तीन गुना बढ़ाना था। पहले हर साल 100 बिलियन डॉलर (₹8.25 लाख करोड़) की योजना थी, जिसे अब बढ़ाकर 300 बिलियन डॉलर (₹24.75 लाख करोड़) कर दिया गया है। समझौते के अनुसार, वर्ष 2035 तक विकासशील देशों को सार्वजनिक और निजी स्रोतों से 1.5 ट्रिलियन डॉलर (₹123.75 लाख करोड़) तक की वित्तीय सहायता प्रदान करने का प्रयास किया जाएगा। इसके अलावा, अनुदान और सार्वजनिक निधियों के रूप में विशेष रूप से कमज़ोर देशों के लिए 1.3 ट्रिलियन डॉलर (₹1,07,25,000 करोड़) सुनिश्चित किए जाएंगे। 

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भारत ने इसके विरोध में क्यों उठाई आवाज?

भारत ने इस समझौते को अस्वीकार करते हुए इसे “ऑप्टिकल इल्यूजन” करार दिया। भारतीय प्रतिनिधि चांदनी रैना ने कहा, “यह दस्तावेज़ वास्तविक चुनौती का समाधान करने में असमर्थ है। यह केवल एक दिखावा समझौता है, जो वास्तविक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकता।” भारत ने विकसित देशों पर अपनी जिम्मेदारियां न निभाने का आरोप लगाया। भारतीय पक्ष ने तर्क दिया कि यह समझौता विकासशील देशों की प्राथमिकताओं की अनदेखी करता है।

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