India News (इंडिया न्यूज), Jamaat-E-Islami: पड़ोसी देश बांग्लादेश इन दिनों काफी उथल-पुथल से गुजर रहा है। इसी बीच खबर है कि जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश में अगला आम चुनाव लड़ने जा रही है। इससे पहले कल बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया था। शेख हसीना सरकार ने संगठन पर प्रतिबंध लगाया था। हसीना सरकार ने राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में जमात पर प्रतिबंध लगाया था।
जमात-ए-इस्लामी से हटा प्रतिबंध
बांग्लादेश की अदालत ने जमात-ए-इस्लामी पर लगे प्रतिबंध को हटा दिया, जिसके साथ ही जमात के लिए बांग्लादेश के अगले चुनाव में हिस्सा लेने का रास्ता खुल गया है। प्रतिबंध हटते ही जमात-ए-इस्लामी नेताओं की गिरफ्तारी का खतरा टल गया और गिरफ्तार नेताओं की रिहाई का रास्ता साफ हो गया। आपको जानकारी के लिए बता दें कि, जमात बांग्लादेश में अवामी लीग की सबसे बड़ी विरोधी थी और मुजीबुर्रहमान का सबसे ज्यादा विरोध करती थी। इसके अलावा, जानकारी सामने आ रही है कि, बांग्लादेश में अवामी लीग पर प्रतिबंध के बाद पार्टी की वेबसाइट पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है। बांग्लादेश में अवामी लीग पार्टी के सभी डिजिटल प्लेटफॉर्म भी ब्लॉक कर दिए गए हैं।
इस वजह से पार्टी का पंजीकरण हुआ था रद्द?
1971 में जब बांग्लादेश पाकिस्तान से आजादी के लिए लड़ रहा था, तब जमात-ए-इस्लामी पर पाकिस्तान का समर्थन करने और आजादी का विरोध करने का आरोप लगा था। इतना ही नहीं, 2010 में बांग्लादेश सरकार ने युद्ध अपराधों के लिए जांच शुरू की और 2013 तक जमात के कई बड़े नेताओं को दोषी ठहराया गया। इसके बाद 1 अगस्त 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी का पंजीकरण रद्द कर दिया और इसे चुनाव लड़ने से अयोग्य घोषित कर दिया गया।
क्या है जमात-ए-इस्लामी का इतिहास?
आपको जानकारी के लिए बता दें कि, जमात-ए-इस्लामी की जड़ें 1941 में सैयद अबुल अला मौदूदी द्वारा स्थापित संगठन से जुड़ी हैं। 1972 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद इसे प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन 1979 में यह राजनीति में वापस आ गई। पार्टी 1996 में अवामी लीग और 2001 से 2006 तक बीएनपी के साथ सरकार में साझेदार थी। 2008 के चुनाव में इसने केवल दो सीटें जीतीं, लेकिन इसका कट्टर धार्मिक और दक्षिणपंथी एजेंडा बांग्लादेशी राजनीति में प्रभावशाली रहा है।