India News (इंडिया न्यूज), Bangladesh News: पिछले साल 5 अगस्त को शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से बांग्लादेश के हालात पूरी तरह बदल गए हैं। शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियों को नष्ट कर दिया गया है और उनके घर पर भी बुलडोजर चलाया गया है। उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर छुट्टियां अब बंद कर दी गई हैं, जबकि इस्लामी ताकतें लगातार वहां माहौल बदलने की कोशिश कर रही हैं। यहां तक कि 1971 का युद्ध, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का गठन हुआ, अब सवालों के घेरे में आ रहा है। बांग्लादेश का गठन बंगाली भाषा और संस्कृति के आधार पर हुआ था, जिसके कारण कहा जा रहा था कि संयुक्त पाकिस्तान में अत्याचार किए गए थे। अब उस पूरे युद्ध को इस्लामी एकता के नाम पर गलत साबित किया जा रहा है।
‘अल्लाह उन्हें माफ करे’
जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा छात्र शिविर के मुखपत्र छात्र संगबाद में भी इसी तरह का एक लेख प्रकाशित हुआ है। इस लेख में कहा गया है, ‘कुछ मुसलमान बिना सोचे-समझे 1971 के खूनी युद्ध में कूद पड़े। उन लोगों ने यह भी नहीं सोचा कि इसके क्या परिणाम होंगे। 1971 का युद्ध उन लोगों की दूरदर्शिता की कमी के कारण हुआ। अल्लाह उन्हें माफ करे।’ जब जमात-ए-इस्लामी की इस राय पर बवाल मचा तो पत्रिका ही वापस ले ली गई। अब यह पत्रिका ऑनलाइन या ऑफलाइन उपलब्ध नहीं है, लेकिन शेख हसीना के जाने के बाद सत्ता में आए लोगों का चरित्र जरूर सामने आ गया है। भले ही लेख और पत्रिका वापस ले ली गई हो, लेकिन यह साफ है कि यह कोई गलती नहीं थी।
क्या है मात-ए-इस्लामी?
पत्रिका के संपादकों का कहना है कि यह लेख बिना पढ़े ही छाप दिया गया। इस वजह से यह गलती हुई, लेकिन जमात-ए-इस्लामी के इतिहास को देखते हुए इस बात पर यकीन करना मुश्किल है। जमात-ए-इस्लामी वह संगठन है जिसने 1971 में भी पाकिस्तान की सेना का साथ दिया था। इसने अलग राष्ट्र का विरोध किया था। फिर जब 1971 के युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश बना तो इस्लामिक स्टूडेंट यूनियन को भंग कर दिया गया। इसके बाद यह 1977 में छात्र शिविर के रूप में फिर से अस्तित्व में आया।
जमात और इसकी छात्र शाखा पर लोगों पर अत्याचार करने के आरोप लगते रहे हैं। 1971 के युद्ध में इस पर पाकिस्तानी सेना के रजाकार, अल-बद्र और अल-शाम जैसे हथियारबंद समूहों को समर्थन देने का आरोप लगा था। ऐसे में इसकी राय को हल्के में नहीं लिया जा सकता। भले ही पत्रिका वापस ले ली गई हो, लेकिन जमात के इरादे साफ हो गए हैं।
जीजा-साले की साइबर ठगी का भंडाफोड़, इनके कांड सुन उड़ जाएंगे होश, जानिए कैसे चढ़े पुलिस हत्थे
जमात-ए-इस्लामी क्या काम कर रहा है?
विशेषज्ञों का कहना है कि जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठन इस समय यह अंदाजा लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि बांग्लादेश में उनके कट्टरपंथी इस्लामी एजेंडे को किस हद तक लागू किया जा सकता है। इसी कोशिश के तहत इस तरह का लेख प्रकाशित किया गया। 1971 में अपनी भूमिका को लेकर आलोचनाओं का सामना करने वाले जमात-ए-इस्लामी ने हमेशा एकजुट पाकिस्तान की बात की है। आपको बता दें कि पिछले एक महीने में बांग्लादेशी सेना के अधिकारी दो बार पाकिस्तान का दौरा कर चुके हैं। इतना ही नहीं मोहम्मद यूनुस और शाहबाज शरीफ भी उनसे मिल चुके हैं। एयरपोर्ट पर पाकिस्तानियों की शारीरिक जांच पर भी रोक लगा दी गई है। ऐसे कई फैसले हैं, जो सवाल खड़े करते हैं।
नोएडा FIITJEE के 11 करोड़ जब्त, CFO और COO समेत 11 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज