India News (इंडिया न्यूज), Pakistan Buy Weapon From America: पाकिस्तान ने अपनी सैन्य रणनीति में बड़ा बदलाव करते हुए अमेरिका और उसके सहयोगियों से हथियार खरीदने का फैसला किया है। पाकिस्तान लंबे समय से सैन्य हथियारों के लिए रूस पर निर्भर रहा है, लेकिन अब वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश कर रहा है। यह कदम भारत और अमेरिका के बीच बढ़ती नजदीकियों का सामना करने और खुद को बेहतर स्थिति में रखने की भी कोशिश है। द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान का एक बड़ा कारोबारी समूह तबानी ग्रुप इस हथियार खरीद प्रक्रिया में अहम बिचौलिए की भूमिका निभा रहा है। यह समूह दशकों से पाकिस्तान को रूस से हथियार आयात करने में मदद करता रहा है। लेकिन अब यह समूह अमेरिकी कंपनियों के साथ काम कर रहा है, जो यूक्रेन को सहायता प्रदान कर रही हैं।
अमेरिका से हथियार खरीदेगा पाकिस्तान
इस बदलाव से पाकिस्तान को रूस पर अपनी सैन्य निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी और वह अमेरिका से अधिक हथियार और सैन्य उपकरण प्राप्त कर सकेगा। द गार्जियन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस्लामाबाद ने अब मॉस्को से वाशिंगटन की ओर रुख करने का साफ संकेत दिया है। आपको जानकारी के लिए बता दें कि, अमेरिका और पाकिस्तान के बीच आखिरी हथियार सौदा 2020 में हुआ था, जिसमें पाकिस्तान ने गैस टरबाइन का ऑर्डर दिया था। इसकी डिलीवरी 2023 में पूरी हुई। इसके बाद पाकिस्तान ने अमेरिकी कंपनियों से हथियार और दूसरे सैन्य उपकरण खरीदने की कोशिशें तेज कर दी हैं।
भारत और अमेरिका की दोस्ती से चिढ़ा पाकिस्तान
यह बदलाव ऐसे समय में आया है, जब भारत और अमेरिका के बीच सैन्य और कूटनीतिक संबंध लगातार आगे बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान का यह कदम वॉशिंगटन पर दबाव बनाने की कोशिश है, ताकि भारत और अफगानिस्तान से जुड़े मुद्दों पर उसे अमेरिका से कुछ राहत मिल सके। रूस से अमेरिका की तरफ रुख करने के पाकिस्तान के फैसले से दोनों देशों के सैन्य संबंधों में तनाव कम हो सकता है। वैसे तो पाकिस्तान दशकों से रूस से हथियार खरीदता रहा है, लेकिन अब वह अमेरिका के साथ अपने संबंधों को प्राथमिकता देने की कोशिश कर रहा है। इससे रूस और पाकिस्तान के बीच भविष्य में हथियारों के सौदे कम हो सकते हैं।
अमेरिका से हथियार खरीदने का पाकिस्तान का कदम उसकी सैन्य रणनीति में एक अहम बदलाव है। यह फैसला रूस पर अपनी सैन्य निर्भरता कम करने और अमेरिका के साथ अपने संबंधों को बेहतर बनाने की कोशिश है। इसके अलावा यह भारत-अमेरिका संबंधों को काउंटर करने की भी कोशिश हो सकती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में इस फैसले का दोनों देशों के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा।
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