India News (इंडिया न्यूज), Pakistan Supreme Court: भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट में ऐतिहासिक बहस के दौरान जस्टिस मुसर्रत हिलाली ने पाकिस्तानी सेना को जमकर फटकार लगाईं है। उन्होंने 1952 के अधिनियम को संविधान के विरुद्ध बताया और सेना के साथ जनरल असीम मुनीर को खूब फटकारा। उन्होंने पूछा कि जब संविधान का अनुच्छेद 8(3) केवल सशस्त्र बलों के लिए है, तो इसे नागरिकों पर क्यों लागू किया जा रहा है? यह सवाल न केवल सैन्य अदालतों की वैधता पर सवाल उठाता है, बल्कि पाकिस्तान में सेना के बढ़ते हस्तक्षेप को भी गहरी चोट पहुंचाता है।

जस्टिस मुसर्रत हिलाली सात जजों की संवैधानिक पीठ का हिस्सा थीं, जो 9 मई, 2023 के दंगों के आरोपियों के खिलाफ सैन्य अदालतों में चल रहे मुकदमों के खिलाफ दायर अपीलों की सुनवाई कर रही है। उन्होंने खुले तौर पर कहा कि अनुच्छेद 8(3) सिर्फ सेना के सदस्यों के अनुशासन को बनाए रखने के लिए है और इसे आम नागरिकों पर लागू करना संविधान की भावना के खिलाफ है। जस्टिस नकीम अख्तर अफगान भी इस राय से सहमत थे।

सेना को कड़ी फटकार लगाई

सुनवाई के दौरान रक्षा मंत्रालय के वकील ख्वाजा हैरिस ने दलील दी कि सैन्य अदालतें संविधान द्वारा समर्थित हैं। लेकिन कोर्ट ने इस दलील को चुनौती दी। जस्टिस जमाल खान मंदोखेल ने चेतावनी दी कि यह मामला सिर्फ सैन्य अदालतों पर प्रतिबंध लगाने तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर कहीं ज्यादा बड़ा हो सकता है। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि पाकिस्तान के संविधान में सिर्फ दो तरह की अदालतों को मान्यता दी गई है। पहली अधीनस्थ अदालतें और दूसरी उच्च न्यायालय।

सेना की कार्रवाई पर खड़े किये सवाल

जस्टिस मुसर्रत हिलाली ने यह भी कहा कि धारा 2(1)(डी)(1) , जिसे 1967 में पाकिस्तान आर्मी एक्ट में जोड़ा गया था,  संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि यह धारा नागरिकों को भी सेना की कार्रवाई के दायरे में लाने की साजिश है, जो संविधान के अनुच्छेदों की अवहेलना करती है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि 9 मई को सेना की इतनी बड़ी विफलता के बावजूद किसी सैन्य अधिकारी को जिम्मेदार क्यों नहीं ठहराया गया।

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सुप्रीम कोर्ट की गंभीर निगरानी में मामला

अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट की गंभीर निगरानी में है और अगली सुनवाई 28 अप्रैल को होगी। इस बहस ने पाकिस्तान की राजनीति और न्याय व्यवस्था में सेना के प्रभाव पर नई बहस छेड़ दी है। क्या न्यायपालिका अब सेना को उसकी हदें दिखाएगी? क्या वह संविधान के नाम पर आम नागरिकों को सैन्य कानून के तहत घसीटना बंद करेगी? यह फैसला पाकिस्तान के लोकतंत्र की दिशा तय करेगा।

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