India News (इंडिया न्यूज), PM Modi Visit Kuwait: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 दिसंबर को दो दिवसीय यात्रा पर कुवैत जाएंगे। उनकी यह यात्रा ऐतिहासिक होगी, क्योंकि 43 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली कुवैत यात्रा होगी। वह कुवैत के अमीर शेख मेशल अल अहमद अल जाबेर अल सबाह के निमंत्रण पर जा रहे हैं। इससे पहले 1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कुवैत का दौरा किया था। इस यात्रा के बहाने आइए जानते हैं कि कभी अंग्रेजों का गुलाम रहा कुवैत आज कितनी तरक्की कर चुका है और तरक्की के मामले में उसने अंग्रेजों को कैसे पीछे छोड़ दिया।
दुनिया के सबसे अमीर देशों में गिना जाता है कुवैत
अरब देश कुवैत तेल भंडारों से भरा एक छोटा सा देश है। इसके बावजूद आज इसकी गिनती दुनिया के सबसे अमीर देशों में होती है, जबकि इस मामले में यह अरब देशों में कतर के बाद दूसरे नंबर पर है। यहां की आय का सबसे बड़ा स्रोत तेल और पेट्रोलियम उत्पाद हैं। अरब प्रायद्वीप के उत्तर-पूर्व में अरब की खाड़ी के मुहाने पर स्थित कुवैत दक्षिण और पश्चिम में सऊदी अरब, उत्तर और पश्चिम में इराक और पूर्व में अरब की खाड़ी से घिरा हुआ है। कुवैत की कुल आबादी 4.4 मिलियन के करीब है, जिसमें से लगभग एक तिहाई कुवैती नागरिक हैं। बाकी नागरिकों में 80 से ज़्यादा देशों के अप्रवासी शामिल हैं।
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इस तरह बना सबसे बड़ा तेल निर्यातक
यह बात साल 1919-1920 की है। कुवैत-नज्द युद्ध के चलते सऊदी अरब ने कुवैत के साथ हर तरह के व्यापार पर रोक लगा दी थी, जो 1923 से 1937 तक जारी रहा। 1937 में व्यापार प्रतिबंध हटाए जाने के बाद ब्रिटिश स्वामित्व वाले कुवैत में तेल की खोज हुई। उस दौरान यूएई-ब्रिटिश कुवैत ऑयल कंपनी ने कुवैत में तेल के बड़े भंडार की खोज की। हालांकि, तभी दूसरा विश्व युद्ध शुरू हो गया और कुवैत में तेल निष्कर्षण शुरू नहीं हो सका। युद्ध खत्म होने के बाद तेल निष्कर्षण शुरू हुआ। वर्ष 1952 तक कुवैत फारस की खाड़ी क्षेत्र में तेल का सबसे बड़ा निर्यातक बन चुका था।
1961 में अंग्रेजों से मिली थी आजादी
1946 से 1982 के बीच के दौर को कुवैत के लिए स्वर्णिम काल कहा जाता है, क्योंकि इस दौरान तेल क्षेत्र में प्रगति के साथ-साथ उसे अंग्रेजों से भी आजादी मिली थी। 1961 में कुवैत की आजादी के बाद शेख अब्दुल्ला अल सलीम अल सबाह वहां के राजा बने। इसके बाद कुवैत ने अपना संविधान तैयार किया, जिसके तहत 1963 में पहली बार संसदीय चुनाव हुए। कुवैत फारस की खाड़ी में पहला अरब देश था जिसने संविधान और संसद की स्थापना की। 1960 से 1970 के बीच यह इस क्षेत्र का सबसे विकसित देश बन गया।
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कुवैत की अर्थव्यवस्था में तेल की 90 प्रतिशत हिस्सेदारी
कुवैती सरकार ने देश के विकास के लिए 2017 में एक नई योजना कुवैत विजन 2035 को अपनाया। इसका उद्देश्य कुवैत को क्षेत्रीय व्यापार और निवेश के केंद्र में बदलना है। इसके साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को तेल के अलावा अन्य क्षेत्रों से भी जोड़ना होगा। हालांकि, आज भी कुवैत की अर्थव्यवस्था में तेल उद्योग का दबदबा है। कुवैती सरकार के निर्यात राजस्व में तेल उद्योग का योगदान करीब 90 फीसदी है।
कुवैती दीनार दुनिया की सबसे महंगी मुद्रा है
कुवैत में करीब 101.5 अरब बैरल कच्चे तेल का भंडार होने का अनुमान है या दुनिया के कुल भंडार का करीब सात फीसदी। वर्तमान में कुवैत की कुल तेल उत्पादन क्षमता 3.15 मिलियन बैरल प्रतिदिन होने का अनुमान है। एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कुवैती सरकार को उम्मीद है कि साल 2040 तक उसकी तेल उत्पादन क्षमता बढ़कर 4.75 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो जाएगी। आज कुवैत की मुद्रा यानी कुवैती दीनार दुनिया की सबसे महंगी मुद्रा मानी जाती है।
कुवैत सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ब्यूरो के मुताबिक साल 2022 में कुवैत की जीडीपी 305.5 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर थी। 2021 के मुकाबले इसमें 8.7% की वृद्धि हुई। जीडीपी में इस वृद्धि का कारण तेल की कीमतों में वृद्धि थी।
कुवैती दीनार का इतिहास
स्वतंत्रता के बाद कुवैत ने सबसे पहले वर्ष 1961 में कुवैती दीनार बैंकनोट जारी किए। इसके बाद दीनार के दो और सेट जारी किए गए। इसके बाद वर्ष 1980 में मुद्रा की तीसरी श्रृंखला शुरू की गई। वर्ष 1990 में जब इराक ने कुवैत पर हमला किया, तो इराकी सरकार ने पूरे क्षेत्र में इराकी दीनार को आधिकारिक मुद्रा के रूप में मान्यता दी। इतना ही नहीं, कुवैत पर कब्जा करने वाली इराकी सेना ने बड़ी संख्या में कुवैती दीनार लूट लिए थे। इसलिए जब कुवैत इराक के कब्जे से आजाद हुआ, तो उसने वर्ष 1991 में फिर से अपनी मुद्रा बदली। वर्ष 1994 में इसमें नए सुरक्षा फीचर जोड़े गए। वर्ष 2014 में कुवैत ने एक नई मुद्रा शुरू की, जिसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि दृष्टिबाधित लोग भी इसे छूकर पहचान सकते हैं।
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अंग्रेजों के दिखाए रास्ते पर चलकर उन्हें पीछे छोड़ दिया
आज कुवैत ने अपने दम पर कभी खुद पर राज करने वाले ब्रिटेन को बहुत पीछे छोड़ दिया है। दरअसल, अंग्रेजों ने तेल के लिए खाड़ी देशों का रुख किया था। उन्हीं की वजह से खाड़ी देशों में तेल की खोज हुई थी। यह वो समय था जब ब्रिटेन ने दुनिया के इतने देशों पर अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था कि उसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था। ब्रिटेन इन देशों के तेल और खनिज जैसे प्राकृतिक संसाधनों के बल पर दुनिया का बादशाह बना घूमता था। फिर एक-एक करके देश स्वतंत्र होते गए और ब्रिटेन का उनके संसाधनों पर नियंत्रण खत्म होता गया।
इसलिए कुवैत जैसे देश अपने संसाधनों के बल पर आगे बढ़ते गए और ब्रिटेन संसाधनहीन होता गया। आज जहां कुवैत के लगभग सभी घरों में हाई-स्पीड इंटरनेट कनेक्शन है, वहीं ब्रिटेन में यह करीब 97 फीसदी घरों तक ही पहुंच पाया है।