India News (इंडिया न्यूज),Old Nuns of Italy : अपने नैनों के कारनामे के कई कहानियां सुनी होगी। लेकिन क्या आपको पता है कि इटली की बूढ़ी ननों की वजह से कई महिलाओं की जिंदगी बदल गई। बता दें कि  बूढ़ी ननों की प्रार्थना और उनके मूत्र से कई महिलाओं को सुख की प्राप्ति हुई। यह काफी हैरान करने वाली बात है लेकिन एक रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। इतालवी वैज्ञानिक पिएरो डोनिनी के एक शोध के बाद कुछ लोगों और कंपनियों ने ऐसा किया है।

1940 के दशक में इतालवी वैज्ञानिक पिएरो डोनिनी ने पाया कि दो खास हॉरमोन LH और FSH महिलाओं को गर्भधारण करने में मदद करते हैं। उन्होंने शोध किया और पाया कि ये हॉरमोन उन महिलाओं के शरीर में ज़्यादा होते हैं जिनका मासिक धर्म बंद हो गया है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर में अंडे बनाने के लिए हॉरमोन तो निकलते हैं लेकिन अंडाशय प्रतिक्रिया नहीं करते।

डोनिनी ने सोचा कि अगर रजोनिवृत्त महिलाओं के मूत्र से ये हॉरमोन निकाले जाएं तो इनका इस्तेमाल उन महिलाओं के लिए किया जा सकता है जो गर्भधारण करने में असमर्थ हैं। डोनिनी ने इन हॉरमोन से एक दवा बनाई और इसका नाम ‘पेर्गोनल’ रखा। पेर्गोनल का मतलब है गोनाड्स (अंडाशय और अंडकोष) से ​​निकला हुआ।

हजारों लीटर मूत्र की जरूरत

अब एक नई समस्या थी, इस दवा को बड़े पैमाने पर कैसे बनाया जाए और इतना मूत्र कहां से लाया जाए? कई सालों तक इसका समाधान नहीं हो पाया। इसके बाद 1950 के दशक में एक यहूदी वैज्ञानिक ब्रूनो लुनेनफेल्ड को डोनिनी की खोज के बारे में पता चला। लुनेनफेल्ड इस दवा पर और शोध करना चाहते थे लेकिन दवा बनाने के लिए हजारों लीटर मूत्र की जरूरत थी।

ननों से मूत्र एकत्र करने की अनुमति

एक दवा कंपनी ने इसमें रुचि दिखाई लेकिन वे भी इतने बड़े पैमाने पर मूत्र एकत्र करने का कोई उपाय नहीं खोज पाए। तब वेटिकन (रोम के पोप का धार्मिक मुख्यालय) के एक सदस्य गिउलिओ पैकेली ने मदद की। उन्होंने कहा कि उनके चाचा पोप पायस इस काम को ‘पवित्र कार्य’ मानते हैं और वे इटली के वृद्धाश्रमों में रहने वाली ननों से मूत्र एकत्र करने की अनुमति देंगे। इसके बाद इटली के अलग-अलग वृद्धाश्रमों से टैंकरों में भरकर बूढ़ी ननों का मूत्र सिरोनो कंपनी की लैब में पहुंचने लगा। गणना के अनुसार, दवा की एक खुराक के लिए 10 ननों के 10 दिनों के मूत्र की आवश्यकता थी।

दुनिया भर की महिलाओं को मिला लाभ

1962 में इस दवा की मदद से इजरायल की एक महिला गर्भवती हुई और उसने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। यह परगोनल से पैदा हुआ पहला बच्चा था। जल्द ही इस दवा की सफलता इतनी बढ़ गई कि दुनिया भर की महिलाओं को इसका लाभ मिलने लगा। 1970 तक यह दवा अमेरिका में भी आम हो गई। लाखों महिलाओं ने गर्भधारण के लिए इसे लेना शुरू कर दिया। हालांकि, यह दवा सस्ती नहीं थी। एक उपचार की कीमत लगभग 10 हजार डॉलर थी।

1982 में अमेरिकी सरकार ने पुरुषों में बांझपन के इलाज के लिए भी इस दवा को मंजूरी दी। कई पुरुषों में पिट्यूटरी ग्रंथि की समस्या के कारण शुक्राणु उत्पादन बंद हो जाता था। परगोनल ने इसमें भी मदद की और हजारों पुरुष पिता बनने में सफल हुए।

एक बार में एक से अधिक बच्चे

परगोनल की वजह से कई बार एक बार में एक से अधिक बच्चे पैदा हो जाते थे। 1985 में अमेरिका में एक महिला ने एक साथ 7 बच्चों को जन्म दिया था। यह मामला इतना बड़ा था कि उसने डॉक्टरों और अस्पताल के खिलाफ लापरवाही का केस दर्ज कराया और 2.7 मिलियन डॉलर (करीब 22 करोड़ रुपए) का मुआवजा जीता। हालांकि, वैज्ञानिकों ने दवा के इस्तेमाल में सुधार किया, जिससे एक साथ ज्यादा बच्चे पैदा होने की घटनाएं कम हो गईं।

कृत्रिम तरीके से बना हॉरमोन

1980 के दशक तक इस दवा की मांग इतनी बढ़ गई कि रोजाना 30 हजार लीटर मूत्र की जरूरत पड़ने लगी। यह संभव नहीं था, इसलिए वैज्ञानिकों ने लैब में कृत्रिम तरीके से इस हॉरमोन को बनाना शुरू किया। 1995 में पहली बार लैब में तैयार की गई दवा ‘गोनल-एफ’ को मंजूरी मिली। इसके बाद बूढ़ी ननों के मूत्र की जरूरत खत्म हो गई।

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