India News (इंडिया न्यूज), Nuclear Arms In Cold War: मार्च 2022 में पश्चिमी यूरोप में धूल का एक बादल छाया रहा। यह धूल का तूफान सहारा रेगिस्तान से उठा था। वैज्ञानिकों को उस धूल के अंदर एक हैरान करने वाली चीज मिली। इसमें 1950 और 1960 के दशक में किए गए अमेरिका और सोवियत संघ (USSR) के परमाणु परीक्षणों के रेडियोधर्मी टुकड़े थे। फ्रांस के पेरिस-सैकले विश्वविद्यालय की एक शोध टीम के विश्लेषण से यह बात सामने आई है। इस धूल में रेडियोधर्मिता के हल्के निशान थे, लेकिन यह स्तर खतरनाक सीमा से काफी कम था। इस अध्ययन से पता चलता है कि परमाणु परीक्षणों का असर दशकों बाद भी हमारे वायुमंडल में बना रहता है।
आज भी मिलते है निशान
सहारा धूल के तूफान अक्सर यूरोप तक पहुंचते हैं। पहले के अध्ययनों से पता चला था कि, इस तरह की धूल अल्जीरिया के रेगेन क्षेत्र से उठती है, जहां फ्रांस ने 1960 के दशक में अपना पहला परमाणु परीक्षण किया था। मार्च 2022 के तूफान के बाद, एक नागरिक-विज्ञान परियोजना के तहत छह देशों से 110 नमूने एकत्र किए गए और उनका विश्लेषण किया गया। वैज्ञानिकों ने पाया कि धूल में रेडियोधर्मी हस्ताक्षर फ्रांसीसी परमाणु परीक्षणों से मेल नहीं खाते। इसके बजाय, ये संकेत वही थे जो शीत युद्ध के दौरान परमाणु परीक्षणों के कारण दुनिया भर में फैले थे।
लोगों के स्वास्थ्य को नहीं है खतरा
आपको जानकारी के लिए बता दें कि, 50 और 60 के दशक में अमेरिका और सोवियत संघ ने सैकड़ों परमाणु परीक्षण किए थे। ये परीक्षण रेगिस्तान, महासागर, द्वीप और जंगलों में किए गए थे। शोध दल ने पाया कि इस धूल में मौजूद रेडियोधर्मी तत्व खतरनाक स्तर से काफी नीचे थे। यह निर्धारित मानक का केवल 0.02% था। यानी आम लोगों के स्वास्थ्य के लिए कोई बड़ा खतरा नहीं है।
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