India News(इंडिया न्यूज), Trump-Zelensky Controversy: व्हाइट हाउस में ट्रंप और जेलेंस्की के बीच हुई तीखी नोक-झोक ने दोनों राजनेताओं में एक दूसरी के बीच अंदरूनी कड़वाहट को बाहर ला दिया था है। वो बाइडेन का दौरा था जब यूक्रेन और जेलेंस्की अमेरिका के प्रिय हुआ करते थे। उन्हीं की शह पाकर जेलेंस्की रूस के साथ युद्ध के मैदान में उत्तर गए। उनकी जिद थी कि या तो वो नाटों देशों का हिस्सा बनेंगे या फिर युद्ध को चुनेंगे। यूक्रेन अब तक नाटो देशों का हिस्सा नहीं बन पाया हुआ। उसके युद्ध को चुना था जो अब उसे पूरी तरह से बर्बाद कर चुका है।
वजह है कि डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनते ही अमेरिका ने यूक्रेन के नाटो में शामिल करने से पल्ला झाड़ लिया। जिसकी कड़वाहट इस बहस से सबके सामने आ गई। लेकिन जिस नाटो के लिए इतना बवाल हुआ था अब वही यूकेन के वरदान बनता नजर आ रहा है।
अमेरिका ने छोड़ा साथ, नाटो देशों ने पकड़ा हाथ
जहां अमेरिका ने यूक्रेन से मुंह मोड़ लिया है, वहीं यूरोपीय देश यूक्रेन के पीछे मजबूती से खड़े हैं। ब्रिटेन और फ्रांस के प्रधानमंत्रियों ने इसका खुलकर समर्थन किया है। ब्रिटेन और फ्रांस संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्य हैं। दोनों देशों के पास आधुनिक हथियार भी हैं। ब्रिटेन ने तो अपने सैनिक भेजने की बात भी कही है। दूसरी तरफ फ्रांस का कहना है कि रूस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। खास तौर पर पुतिन की बातों पर। ब्रिटेन और फ्रांस के राष्ट्रपति भी डोनाल्ड ट्रंप से मिल चुके हैं। यूरोप में इन दो महाशक्तियों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वहीं फ्रांस के राजनीतिज्ञ भी यूक्रेन से समर्थन में ट्वीट करते दिखे उन्होंने एक्स पर लिखा- ‘यूक्रेन के लोगों से ज़्यादा कोई भी शांति नहीं चाहता। इसलिए हम स्थायी और न्यायपूर्ण शांति के लिए एक साझा रास्ते पर काम कर रहे हैं। यूक्रेन जर्मनी और यूरोप पर भरोसा कर सकता है।’
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यूक्रेन के समर्थन में उतरा जर्मनी
इसके अलावा, जर्मनी भी यूक्रेन के समर्थन में है। जर्मनी के चांसलर ने भी एक्स पर ट्वीट करते हुए लिखा-
“एक हमलावर है: रूस।
एक पीड़ित है: यूक्रेन।
हमने तीन साल पहले यूक्रेन की मदद करके और रूस पर प्रतिबंध लगाकर सही किया था – और ऐसा करते रहना चाहिए।
“हम” से मेरा मतलब है अमेरिकी, यूरोपीय, कनाडाई, जापानी और कई अन्य।
उन सभी का शुक्रिया जिन्होंने मदद की है और ऐसा करना जारी रखा है। और उन लोगों का सम्मान जो शुरू से ही लड़ रहे हैं – क्योंकि वे अपनी गरिमा, अपनी स्वतंत्रता, अपने बच्चों और यूरोप की सुरक्षा के लिए लड़ रहे हैं।