India News (इंडिया न्यूज), Azerbaijan: पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान पर भारत द्वारा की गई सैन्य कार्रवाई के बाद तुर्की और अजरबैजान ने खुलकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। इसके बाद भारत में इन देशों का बहिष्कार शुरू हो गया है। लोग सोशल मीडिया पर अजरबैजान और तुर्की को ट्रेंड कर रहे हैं और इन देशों की आलोचना कर रहे हैं। यहां तक कि बड़ी संख्या में भारतीय अजरबैजान के लिए अपनी बुकिंग रद्द कर रहे हैं। अजरबैजान को लेकर शुरू हुए बहिष्कार के ट्रेंड के बाद कई लोग इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानना चाहते हैं।
आपको बता दें, अजरबैजान एक मुस्लिम बहुल देश है, फिर भी यह देश धर्मनिरपेक्ष है। आइए जानते हैं कि मुस्लिम बहुल होने के बावजूद अजरबैजान एक धर्मनिरपेक्ष देश कैसे है और यहां की सरकार धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देने के लिए कैसे काम करती है?
98 प्रतिशत से ज्यादा हैं मुस्लिम
अजरबैजान की आबादी की बात करें तो यहां की एक बड़ी आबादी मुस्लिम धर्म को मानती है। अजरबैजान के आंकड़ों के मुताबिक, यहां की 96 से 99 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है, जिसमें से 55 से 65 प्रतिशत शिया मुस्लिम हैं और बाकी आबादी सुन्नी मुस्लिम है। इसके अलावा यहां ईसाई, यहूदी और हिंदू धर्म को मानने वाले लोग भी रहते हैं।
पहला मुस्लिम धर्मनिरपेक्ष देश
मुस्लिम बहुल होने के बावजूद भी अज़रबैजान एक धर्मनिरपेक्ष देश है। 1918 में यह देश पहला मुस्लिम धर्मनिरपेक्ष देश बना था। अज़रबैजान के संविधान के अनुसार यहाँ किसी भी धर्म को राष्ट्रीय धर्म का दर्जा प्राप्त नहीं है और सभी धर्मों के लोगों को समान अधिकार दिए गए हैं। मुस्लिम बहुल होने के बावजूद भी इस देश में महिलाओं पर सख्त प्रतिबंध नहीं लगाए गए हैं और स्कूलों और सार्वजनिक संस्थानों में हिजाब पहनना भी इस देश में प्रतिबंधित है।
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इसके अलावा यहाँ की सरकार किसी भी धर्म के अनुयायियों को सार्वजनिक स्थानों पर धार्मिक गतिविधियाँ करने की अनुमति नहीं देती है, ताकि समाज को कोई ख़तरा न हो। इतना ही नहीं, अज़रबैजान की सरकार का धार्मिक संस्थानों पर भी नियंत्रण है, जिसके ज़रिए सरकार समाज के ख़िलाफ़ की जा रही गतिविधियों पर नज़र रखती है। इसके अलावा सरकार ने धार्मिक असमानता को नियंत्रित करने के लिए कई तरह की सेंसरशिप भी लगाई हुई है।