India News (इंडिया न्यूज), Bangladesh New NSA : बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बाद हालात सुधरने की बजाय और खराब होते जा रहे हैं। राजधानी में यूनुस सरकार के खिलाफ कई बड़े विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि यूनुस सरकार और सेना के बीच अनबन चल रही है। अब इसी सिलसिले में वहां से बड़ी खबर आ रही है। यूनुस सरकार ने खलीलुर रहमान को बांग्लादेश का नया राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) नियुक्त किया है। खबरों के मुताबिक यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब सेना प्रमुख वकार उज जमान विदेश में थे।

अब माना जा रहा है कि सेना प्रमुख इस फैसले से नाराज हैं। अब ढाका में सरकार और सेना के बीच टकराव बढ़ सकता है और मोहम्मद यूनुस को सेना प्रमुख के गुस्से का सामना करना पड़ सकता है। आपको बता दें कि मोहम्मद यूनुस की सरकार ने 9 अप्रैल को अचानक खलीलुर रहमान की नियुक्ति की है।

सवालों के घेरे में यूनुस सरकार

नॉर्थईस्ट न्यूज की एक रिपोर्ट के मुताबिक खलीलुर रहमान को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) बनाए जाने के बाद उनके और सेना प्रमुख जनरल वकार जमान के बीच संबंधों को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। खलीलुर रहमान पहले से ही रोहिंग्या मुद्दे और अन्य महत्वपूर्ण मामलों पर सरकार के शीर्ष प्रतिनिधि हैं। अब जब उन्हें एक और बड़ा पद दिया गया है, तो उनकी ताकत और बढ़ गई है। इसके अलावा माना जा रहा है कि अब दोनों लोगों के बीच टकराव और भी बढ़ सकता है। क्योंकि जनरल जमान देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हैं।

आपको बता दें कि खलीलुर रहमान का नाम साल 2001 में एक महिला सरकारी कर्मचारी की हत्या के मामले में भी सामने आया था। इसी वजह से ढाका के राजनीतिक विश्लेषक भी यूनुस के फैसले को गलत बता रहे हैं। उनका मानना ​​है कि इस नियुक्ति से भविष्य में विवाद हो सकता है।

टकराव के पीछे क्या है वजह?

बांग्लादेश के राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि खलीलुर रहमान को एनएसए बनाए जाने के बाद उनका सेना प्रमुख जनरल वकार जमान से टकराव लगभग तय है। इसके अलावा खलीलुर रहमान के पास अमेरिकी पासपोर्ट भी है और वह अक्सर वाशिंगटन में रहते हैं।

इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के वकील और रिटायर्ड मेजर सरवर हुसैन का मानना ​​है कि यूनुस सरकार ने खलीलुर रहमान को भारत के अजीत डोभाल जैसा दिखाने की कोशिश की है। हुसैन ने कहा कि यूनुस सरकार शायद खलीलुर रहमान और जनरल जमान के बीच शक्ति संतुलन बनाना चाहती थी, लेकिन यह फैसला सही नहीं है। उनका मानना ​​है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद किसी पूर्व सैन्य अधिकारी या किसी अनुभवी राजनयिक को दिया जाना चाहिए था।

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