India News (इंडिया न्यूज), Powerful Warrior Of Ramayana: रामायण के पन्नों में रावण को अद्भुत विद्वान, महान तांत्रिक और असीम शक्ति वाला योद्धा बताया गया है। वेदों, पुराणों और शास्त्रों का गूढ़ ज्ञान होने के साथ-साथ रावण ने तपस्या और भक्ति में भी अपना स्थान बनाया था। लेकिन उसके अहंकार और दुष्कर्मों ने उसे श्रीराम के हाथों मृत्यु की ओर धकेल दिया। पर क्या वास्तव में रावण ही रामायण का सबसे ताकतवर योद्धा था? दरअसल, रामायण में एक ऐसा योद्धा भी था जिसने युद्ध के दौरान श्रीराम को दो बार पराजित किया था। यह योद्धा कोई और नहीं बल्कि रावण का ही पुत्र मेघनाद था, जिसे ‘इंद्रजीत’ के नाम से भी जाना जाता है। वेदों में ऐसा कहा गया है की मेघनाद रावण से भी अधिक घातक और शक्तिशाली योद्धा था।

मेघनाद ने देवताओं को भी किया पराजित

मेघनाद ने अपने जीवनकाल में कई बार ब्रह्मा और देवी शक्तियों की कठोर तपस्या कर अमोघ शक्तियों की प्राप्ति की थी। उसकी तपस्या का परिणाम यह था कि वह युद्ध में देवताओं को भी पराजित कर चुका था। उसे ‘इंद्रजीत’ नाम इसलिए मिला क्योंकि उसने स्वयं देवराज इंद्र को हराकर उन्हें बंदी बना लिया था। राम-रावण युद्ध में मेघनाद ने अपने अद्भुत अस्त्र-शस्त्रों से ऐसी विध्वंसक लड़ाई लड़ी, जिसने श्रीराम और लक्ष्मण को भी असहाय कर दिया था। एक बार उसने लक्ष्मण को ऐसी दिव्य शक्ति से घायल कर दिया कि उन्हें बचाने के लिए हनुमान जी को संजीवनी बूटी लानी पड़ी।

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जब श्रीराम-लक्ष्मण नागपाश में हुए जकड़े

युद्ध के आरंभिक दौर में ही मेघनाद ने नागपाश नामक दिव्य बाण चलाया, जिससे विषैले नागों ने श्रीराम और लक्ष्मण को जकड़ लिया। दोनों भाइयों को इस स्थिति से बाहर निकालने के लिए हनुमान जी ने गरुड़ देव को बुलाया। गरुड़ जी के आशीर्वाद से श्रीराम और लक्ष्मण नागपाश से मुक्त हो सके, वरना युद्ध की दशा ही बदल सकती थी।

हनुमान जी ने तोड़ा मेघनाद का तप

मेघनाद की शक्तियां इतनी प्रबल थीं कि वह केवल तभी मारा जा सकता था जब वह युद्ध में हो, अन्यथा उसे मारना असंभव था। उसने अपनी अमोघ शक्तियों को जागृत करने के लिए देवी माता का अखंड हवन आरंभ किया था। यह जानने के बाद हनुमान जी वानरों की सेना लेकर वहां पहुंचे और उसका हवन भंग कर दिया। इसके कारण लक्ष्मण को युद्ध में उसे हराने का अवसर मिला और अंत में मेघनाद का वध हुआ। मेघनाद रामायण के सबसे रहस्यमयी और ताकतवर योद्धाओं में से एक था। अगर उसकी तपस्या और दिव्य अस्त्रों का रहस्य बना रहता, तो शायद युद्ध की दिशा कुछ और होती।

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