India News (इंडिया न्यूज),Namak Haram ki Haweli: दिल्ली एक बहुत ही दिलचस्प शहर है, खासकर उन लोगों के लिए जो इतिहास को पसंद करते हैं। दिल्ली भारत के उन शहरों में से एक है जिसने प्राचीन, मध्यकालीन और आधुनिक तीनों कालखंडों का इतिहास देखा है। कहा जाता है कि दिल्ली को सात बार नष्ट किया गया और फिर से बनाया गया। इसके सीने में हज़ारों कहानियाँ दफ़न हैं जिन्हें हम किताबों में पढ़ते हैं या कहीं सुनते हैं। उन्हीं कहानियों में से एक है ‘नमक हराम की हवेली’ की। पुरानी दिल्ली की कूचा घासीराम गली में आज भी गद्दारी के निशान मौजूद हैं। जो भी इस गली में मौजूद ‘नमक हराम की हवेली’ के सामने से गुजरता है, उसके मुँह से बस एक ही शब्द निकलता है- ‘गद्दार’। आइए जानते हैं कि आखिर एक हवेली या हवेली के मालिक को ऐसा नाम क्यों मिला।

हवेली को कैसे कलंकित किया गया

इस शानदार हवेली को लोग ‘नमक हराम’ क्यों कहने लगे! इसे समझने के लिए थोड़ा इतिहास की ओर चलते हैं। 19वीं सदी की शुरुआत तक भारत की सभी रियासतें ब्रिटिश हुकूमत की गुलामी स्वीकार कर चुकी थीं। लेकिन कुछ रियासतें अभी भी अंग्रेजों के खिलाफ लड़ रही थीं, उनमें से एक थे इंदौर के युवा महाराजा यशवंत राव होलकर। सभी रियासतों ने अंग्रेजों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था लेकिन होलकर ने ईस्ट इंडिया कंपनी की गुलामी के खिलाफ लड़ने का फैसला किया था। यशवंत राव होलकर के वफादारों में भवानी शंकर खत्री नाम का एक शख्स था, लेकिन एक समय ऐसा आया जब होलकर और खत्री के बीच अनबन हो गई और खत्री ने अंग्रेजों से हाथ मिला लिया।

अंग्रेजों को देता था खुफिया जानकारी

खत्री अब होलकर और मराठा सेना से जुड़ी सारी खुफिया जानकारी अंग्रेजों को देता था। 1803 में पटपड़गंज इलाके में होलकर और ब्रिटिश सेना के बीच भीषण युद्ध हुआ। पत्रकार आरवी स्मिथ अपनी किताब ‘पटपड़गंज: तब और अब’ में लिखते हैं कि अंग्रेजों और मराठा सैनिकों के बीच करीब तीन दिन तक लड़ाई चलती रही। मुगल भी मराठों की तरफ से लड़ रहे थे, लेकिन इस लड़ाई में मराठा सेना को हार का सामना करना पड़ा।

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गद्दार को तोहफे में मिली हवेली

भवानी शंकर खत्री ने इस लड़ाई में गद्दारी की थी और अंग्रेजों का साथ दिया था। खत्री की वफादारी से खुश होकर अंग्रेजों ने उन्हें चांदनी चौक में एक शानदार हवेली तोहफे में दी, जहां वे अपने परिवार के साथ रहने लगे। जिसके बाद लोगों ने खत्री को देशद्रोही कहना शुरू कर दिया और खत्री की हवेली को ‘नमक हराम की हवेली’ कहना शुरू कर दिया… उस समय खत्री की प्रतिष्ठा पर जो दाग लगा था, वह दो सौ पच्चीस साल बाद भी नहीं धुल पाया है और आज भी लोग उस आलीशान हवेली को नमक हराम की हवेली कहते हैं। आज पचास साल से भी ज्यादा समय से लोग उस हवेली में किराए पर रह रहे हैं।

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