India News (इंडिया न्यूज), Life Of Tawaifs: भारतीय कला के संरक्षण में तवायफों का योगदान ऐतिहासिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण रहा है। संगीत, नृत्य, और कविता जैसी कलाओं के प्रसार में तवायफों और उनके कोठों की भूमिका केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं थी, बल्कि उनकी कला समाज के सांस्कृतिक और कलात्मक परंपराओं को जिंदा रखने का एक माध्यम थी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अपने इस महत्वपूर्ण योगदान के बावजूद तवायफों को समाज ने सम्मान नहीं दिया और उनका जीवन कठिनाइयों और संघर्षों से भरा रहा।
किस दौर से गुज़रता था तवायफों का जीवन
तवायफों का जीवन, आम महिलाओं से काफी अलग था। जहां अन्य महिलाएं परिवार, पति और समाज से जुड़ी रहती थीं, वहीं तवायफें पर्दे से बाहर एक खुली जिंदगी जीती थीं। लेकिन इस खुली जिंदगी की कीमत उन्हें व्यक्तिगत सुखों का त्याग कर चुकानी पड़ती थी। तवायफों का जीवन कठोर अनुशासन और नियमों से बंधा होता था। कोठों पर, तवायफें कोठे की मालकिन की अनुमति के बिना बाहर नहीं जा सकती थीं, और उनकी कला प्रदर्शन के समय पर भी कोई स्वतंत्रता नहीं होती थी। उन्हें किसी भी परिस्थिति में अपने कद्रदानों के सामने मुजरा और संगीत पेश करना पड़ता था, चाहे उनकी अपनी स्थिति कैसी भी हो।
कम उम्र में ही हो जाती थी जब शिकार
कम उम्र से ही लड़कियों को कोठों पर तैयार किया जाता था, जिसमें उन्हें घंटों तक संगीत और नृत्य का रियाज करना पड़ता था। यही कारण है कि तवायफें उच्च स्तर की कलात्मक योग्यता हासिल करती थीं, जो आम कलाकारों में कम देखने को मिलती थी। लेकिन इस कला साधना के पीछे उनका जीवन एकाकी और कठिनाइयों से भरा होता था। परिवार, विवाह, और सामान्य रिश्तों से दूर, तवायफों के पास केवल कोठा और उनके कद्रदानों का ही साथ होता था। कोठों पर ही रहने वाली कम खूबसूरत लड़कियों को तवायफों की सेवा में लगा दिया जाता था, जिसमें गजरा बनाना, काजल तैयार करना आदि शामिल होता था।
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छिन जाते थे जब सब अधिकार
इस तरह के जीवन में व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संतोष की कमी होती थी, और इसने तवायफों को समाज में सम्मान और खुशी से दूर रखा। उनके जीवन में जो कला, साज-श्रृंगार, और भव्यता नजर आती है, उसके पीछे एक सूनी और दर्द भरी वास्तविकता भी थी। तवायफों ने समाज को कला का खजाना दिया, लेकिन बदले में उन्हें केवल त्याग, पीड़ा और सामाजिक बहिष्कार ही मिला।
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