India News (इंडिया न्यूज), Sindoor Daan Ritual: हिंदू परंपरा के विवाह में कई तरह की रस्में होती हैं, जिनका सनातन धर्म में विशेष महत्व है। इसलिए विवाह से जुड़ी हर रस्म को ध्यान से निभाया जाता है, ताकि भावी वर-वधू का वैवाहिक जीवन हमेशा सुखमय बना रहे। विवाह भी हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है। वैवाहिक जीवन की शुरुआत से पहले सदियों से विवाह की परंपरा चली आ रही है। विवाह से पहले वर पक्ष और वधू पक्ष में सगाई, तिलक, हल्दी, मेहंदी आदि कई तरह की रस्में होती हैं। वहीं, विवाह के दौरान वरमाला, फेरे, कन्यादान और सिंदूरदान जैसी रस्में भी निभाई जाती हैं।

सिंदूरदान हिंदू धर्म की एक ऐसी परंपरा है, जिसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता है। विवाह में सिंदूरदान का बहुत महत्व माना जाता है। इसलिए पंडित द्वारा मंत्रोच्चार के साथ दूल्हा दुल्हन की मांग में सिंदूर भरता है। इसे सिंदूरदान कहा जाता है। सिंदूरदान के बाद दूल्हा-दुल्हन न केवल एक नए वैवाहिक जीवन की शुरुआत करते हैं बल्कि सात जन्मों के बंधन में भी बंध जाते हैं।

सिंदूरदान की रस्म किसे नहीं देखनी चाहिए

कुंवारी लड़कियां शादी की सभी रस्में देख सकती हैं, लेकिन सिंदूरदान की रस्म देखना वर्जित है। इसलिए सिंदूरदान के समय कपड़े की मदद से एक चारदीवारी बनाई जाती है, जिसके भीतर दूल्हा दुल्हन की मांग में 3, 5 या 7 बार सिंदूर भरता है। बिदाई भरने के लिए अंगूठी या सिक्के का इस्तेमाल किया जाता है। यह परंपरा खास तौर पर बिहार जैसे इलाकों में निभाई जाती है और यहां अविवाहित लड़कियों को सिंदूरदान की रस्म देखने की मनाही होती है। इसके पीछे मान्यता यह है कि अगर कोई अविवाहित लड़की इस रस्म को देख लेती है तो उसे सिंदूरदान का पूरा लाभ नहीं मिलता है।

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अखंड सौभाग्य का प्रतीक है सिंदूर

हिंदू धर्म में सिंदूर को अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। हमारे शरीर में 7 चक्र होते हैं, जो सिर के उस हिस्से से नियंत्रित होते हैं जहां सिंदूर भरा जाता है। ज्योतिष के अनुसार बिदाई के पीछे सूर्य ग्रह स्थित होता है। साथ ही मेष राशि का स्थान माथे पर होता है, इसलिए माथे पर बिछिया पहनने से सूर्य और मंगल दोनों ही मजबूत होते हैं।

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