India News (इंडिया न्यूज), Wajid Ali Shah: वाजिद अली शाह, अवध के अंतिम शासक, इतिहास में अपनी विलक्षणता और रंगीन जीवनशैली के लिए जाने जाते हैं। उनकी कहानी न केवल एक राजा के रूप में, बल्कि एक ऐसी शख्सियत के रूप में है जो कला, संस्कृति और रासरंग में डूबा हुआ था। उनका जीवन जितना राजसी था, उतना ही विवादास्पद भी।

संगीत, नृत्य और पाक कला में महारत

वाजिद अली शाह का नाम सिर्फ एक शासक के रूप में नहीं, बल्कि संगीत, नृत्य और पाक कला के संरक्षक के रूप में भी प्रसिद्ध है। उन्होंने अपनी रुचि से अवध को सांस्कृतिक धरोहर के रूप में विकसित किया। उनकी कला-प्रियता का प्रमाण यह है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में 60 से अधिक किताबें लिखीं, जिनमें उनकी आत्मकथा “परीखाना” और “इश्कनामा” विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं।

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महिला अंगरक्षक और अस्थायी विवाह

वाजिद अली शाह एकमात्र ऐसे नवाब थे, जिनकी सुरक्षा का जिम्मा महिला अंगरक्षकों पर था। इन अंगरक्षकों में अधिकांश अफ्रीकी महिलाएं थीं, जिन्हें विदेशी व्यापारियों के जरिए लाया गया था। यह दिलचस्प है कि नवाब ने इनमें से कुछ से विवाह भी किया। उनके लिए विवाह का अर्थ था शालीनता और सेवा करने वाली स्त्रियों को सम्मान देना। यही कारण था कि उन्होंने अस्थायी विवाह की परंपरा शुरू की।

365 से अधिक विवाह और तलाक

वाजिद अली शाह ने अपने जीवन में 375 के करीब विवाह किए। उनका मानना था कि बिना विवाह किए किसी महिला के साथ रहना अनुचित है। इसके चलते उन्होंने कई अस्थायी विवाह किए और समय आने पर इन संबंधों को समाप्त भी कर दिया। उनकी आलोचना इस बात पर भी होती रही कि उन्होंने बड़ी संख्या में तलाक दिए।

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पहला संबंध और विवादास्पद जीवन

वाजिद अली शाह का पहला संबंध मात्र आठ वर्ष की आयु में हुआ, जो अधेड़ उम्र की एक सेविका के साथ था। उनकी आत्मकथा “परीखाना” में इसका उल्लेख मिलता है। यह संबंध जबरदस्ती का परिणाम था और दो साल तक चला। इसके बाद भी उनके जीवन में ऐसे कई विवादास्पद प्रसंग सामने आए।

कोलकाता में निर्वासन और परीखाना

जब अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा कर लिया, तो उन्होंने वाजिद अली शाह को लखनऊ छोड़ने पर मजबूर कर दिया। निर्वासन के बाद, कोलकाता में उन्होंने नदी किनारे गार्डन रिज नामक अपनी जागीर बसाई। यहाँ भी उन्होंने अपने पुराने अंदाज को बनाए रखा। उन्होंने एक परीखाना बनाया, जिसमें उनकी पत्नियां और बांदियां रहती थीं।

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अंतिम दिन और विरासत

अपने अंतिम दिनों में वाजिद अली शाह कर्ज के बोझ तले दब गए थे। अंग्रेजों ने उनके संग्रहालय से उनकी कई दुर्लभ कृतियां गायब कर दीं। 21 सितंबर 1887 को जब उनकी मृत्यु हुई, तो उनकी शवयात्रा में हजारों लोग शामिल हुए।

नवाब की अनोखी पहचान

वाजिद अली शाह न केवल एक राजा थे, बल्कि एक सांस्कृतिक प्रतीक भी थे। उनके जीवन ने यह दिखाया कि शासक का काम केवल राज्य की देखभाल तक सीमित नहीं है, बल्कि कला, संस्कृति और मानवीय मूल्यों को भी बढ़ावा देना है। हालांकि उनका जीवन विवादास्पद रहा, लेकिन उनकी सांस्कृतिक धरोहर आज भी अद्वितीय है।

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