China Real Estate Evergrande Crisis
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
चीन की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी एवरग्रांड दिवालिया होने की कगार पर है। कंपनी पर 300 बिलियन डॉलर से ज्यादा की देनदारी है, जिसे चुकाने से कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए हैं। कंपनी का कहना है कि उसके पास इस भारी-भरकम कर्ज को चुकाने के लिए पैसे नहीं हैं। इसके बाद ग्लोबल मार्केट को बड़ा धक्का लगा है। शेयरधारकों के पैसे डूब रहे हैं, तो दुनिया के कई शेयर मार्केट में गिरावट देखी जा रही है।
Evergrande चीन की सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनियों में से एक है। 1996 में शुरू यह कंपनी फिलहाल चीन की दूसरी सबसे बड़ी रियल एस्टेट कंपनी है। कंपनी के चीन के करीब 200 शहरों में 1300 से भी ज्यादा प्रोजेक्ट हैं। कंपनी का रियल एस्टेट के अलावा इलेक्ट्रिक व्हीकल, थीम पार्क, फूड एंड बेवरेज, टूरिज्म और पैकेज्ड वाटर बोटल का भी कारोबार है, जिनमें 2 लाख से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है। कंपनी की खुद की एक फुटबॉल टीम भी है। कंपनी के मालिक झू जिआयिन एक वक्त चीन के सबसे अमीर शख्स की लिस्ट में शामिल थे।

क्यों बिगड़े Evergrande के हालात

अपनी इकोनॉमी को ओपन करने के बाद चीन में रियल एस्टेट एक बड़ा बाजार बनकर उभरा। मिडिल क्लास की आय बढ़ी और शहरों की तरफ लोगों का पलायन होने लगा। इससे प्रॉपर्टी की डिमांड भी बढ़ी और डिमांड के साथ कीमतें भी। लिहाजा लोगों ने प्रॉपर्टी गैंबलिंग का खेल शुरू कर दिया। यानी सस्ते दामों में प्रॉपर्टी खरीदना और महंगे दामों में बेचना। चीन में इस तरह की कई बिल्डिंग हो गईं जिन्हें लोगों ने खरीद-खरीद कर खाली पटक दिया। इन बिल्डिंग्स में कोई रहता नहीं था। जब प्रॉपर्टी मार्केट में ज्यादा झोल होने लगा तो चीनी सरकार बीच में आई। 2020 में चीन की सरकार रियल एस्टेट कंपनियों के लिए 3 रेड पॉलिसी लाई।
इनमें से किसी का भी उल्लंघन करने पर कंपनियों पर आर्थिक पाबंदी और पेनल्टी लगाई जाने की बात की गई। इस पॉलिसी के लागू होने के बाद से ही एवरग्रांड का संकट शुरू हो गया। अगर कोई कंपनी तीनों रेड लाइन का पालन करती है तो उसे ग्रीन कैटेगरी में रखा जाएगा और वो अपना सालाना कर्ज 15% तक बढ़ा सकती है। अगर कोई कंपनी तीनों रेड लाइन का पालन नहीं करती है, तो उसे भविष्य में कोई कर्ज नहीं मिलेगा।

Evergrande को बचाने की कवायद

चीन की सरकार चाहे तो बेलआउट पैकेज या किसी और तरीके से कंपनी को डूबने से बचा सकती है। चीनी सरकार पहले भी इस तरह के कदम उठा चुकी है, लेकिन एवरग्रांड के मामले में इसकी उम्मीदें कम नजर आ रही हैं। सरकार ने अभी तक कंपनी को लेकर किसी तरह की कोई टिप्पणी नहीं की है। चीनी सरकार अमीर-गरीब के बीच की आर्थिक खाई को पाटने के लिए कंपनी की कोई मदद नहीं करेगी। अगर सरकार कंपनी की मदद करती है तो इससे लोगों में ये संदेश जा सकता है कि सरकार गलत तरीके से व्यापार को बढ़ावा दे रही है। यानी एवरग्रांड को बचाने के लिए सरकार आगे आएगी इसकी उम्मीदें न के बराबर हैं।

Evergrande पर है 300 बिलियन डॉलर का कर्ज

कंपनी पर फिलहाल 300 बिलियन डॉलर का कर्ज है। अगले एक साल में कंपनी को 37 बिलियन डॉलर ब्याज के रूप में भी चुकाना है। साथ ही कंपनी ने 15 लाख से भी ज्यादा लोगों से प्रॉपर्टी के लिए एडवांस पैसा ले रखा है। पिछले साल कंपनी ने अपने कर्मचारियों से कहा था कि वे कंपनी में पैसा लगाएं वरना उन्हें बोनस नहीं दिया जाएगा। इस तरह कंपनी पर अपने कर्मचारियों की भी 6 बिलियन डॉलर की देनदारी है। कंपनी की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती। फाइनेंशियल रेटिंग एजेंसियों ने कंपनी की रेटिंग को गिरा दिया है, जिससे कंपनी के बॉन्ड कम कीमतों पर बिक रहे हैं। जब बायर्स ने देखा कि कंपनी मजबूरी में अपनी प्रॉपर्टी बेच रही है, तो बायर्स भी कम कीमतों पर ही कंपनी की प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं।

कंपनी के डूबने का क्या असर होगा

अगर Evergrande जैसी बड़ी कंपनी डूबती है तो इसका असर चीन के पूरे रियल एस्टेट सेक्टर पर पड़ेगा। चीन की जीडीपी में रियल एस्टेट सेक्टर की करीब 29% हिस्सेदारी है। यानी अगर रियल एस्टेट सेक्टर प्रभावित हुआ तो ये अपने साथ दूसरे सेक्टरों की ग्रोथ को भी धीमा कर सकता है। साथ ही चीन दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। अगर चीन की अर्थव्यवस्था में कुछ उथल-पुथल होती है, तो उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। कंपनी के डूबने की खबरों का असर अभी से मार्केट पर दिखाई भी देने लगा है। कंपनी के शेयर 2010 के बाद से अपने सबसे न्यूनतम स्तर पर ट्रेड कर रहे हैं। दुनिया के टॉप अमीरों में शुमार एलन मस्क, जेफ बेजोस, बिल गेट्स, मार्क जकरबर्ग को 26 बिलियन डॉलर से ज्यादा का नुकसान हो चुका है।
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