Even Today The Trend of Wearing Saree is Everywhere : भारतीय संस्कृति और हिन्दू परम्परा में साड़ी महिलाओं का प्रमुख परिधान है। साड़ी शायद विश्व की सबसे लंबी और पुराने परिधानों में से एक है। इसकी लंबाई लगभग 5 से 6 गज लम्बी होती है लेकिन अब समय बदल रहा है। वेस्टर्न कपड़े जैसे कि जींस-टॉप, जींस-शर्ट, पंजाबी सलवार-सूट, स्कल्ट, लंहगा आदि ज्यादा पहने जाने लगा लेकिन लड़कियां सबसे ज्यादा खूबसूरत साड़ी में ही लगती है।
आज भी शादी-ब्याह हो या पूजा-पाठ हर जगह आज भी साड़ी पहनना का ही ट्रेंड है। पुरातन काल से चली आ रही पारंपरिक परिधान साड़ी आज तरह-तरह के रंगों डिजायनों में उपलब्ध है। भारत में अलग-अलग शैली की साड़ियों में कांजीवरम साड़ी, बनारसी साड़ी, पटोला साड़ी और हकोबा मुख्य हैं।
मध्य प्रदेश की चंदेरी, महेश्वरी, मधुबनी छपाई, असम की मूंगा रशम, उड़ीसा की बोमकई, राजस्थान की बंधेज, गुजरात की गठोडा, पटौला, बिहार की तसर, काथा, छत्तीसगढ़ी कोसा रशम, दिल्ली की रशमी साड़ियां, झारखंडी कोसा रशम, महाराष्ट्र की पैथानी, तमिलनाडु की कांजीवरम, बनारसी साड़ियां, उत्तर प्रदेश की तांची, जामदानी, जामवर एवं पश्चिम बंगाल की बालूछरी एवं कांथा टंगैल आदि प्रसिद्ध साड़ियाँ हैं।
चंदेरी साड़ी (Even Today The Trend of Wearing Saree is Everywhere)
चंदेरी की विश्व प्रसिद्ध साड़ियां आज भी हथकरघे पर ही बुनी जाती हैं, यही इसकी विशेषता है। इन साड़ियों का अपना समृद्धशाली इतिहास रहा है। पहले ये साड़ियां केवल राजघराने में ही पहनी जाती थीं, लेकिन अब यह आम लोगों तक भी पहुंच चुकी हैं। एक चंदेरी साड़ी बनाने में एक बुनकर को सालभर का वक्त लगता है, इसीलिए चंदेरी साड़ियों को बनाते वक्त कारीगर इसे बाहरी नजरों से बचाने के लिए हर मीटर पर काजल का टीका लगाते हैं।
बनारसी साड़ी (Even Today The Trend of Wearing Saree is Everywhere)
बनारसी साड़ी एक विशेष प्रकार की साड़ी है जो उत्तरप्रदेश के चंदौली,बनारस, जौनपुर, आजमगढ़, मिजार्पुर और संत रविदासनगर जिले में बनाई जाती है। रेशम की साड़ियों पर बनारस में बुनाई के संग जरी के डिजायन मिलाकर बुनने से तैयार होने वाली सुंदर रेशमी साड़ी को बनारसी साड़ी कहा जाता है।
पटोला साड़ी (Even Today The Trend of Wearing Saree is Everywhere)
यह साड़ी मुख्यत हथकरघे से बनती है। पटोला साड़ी दोनों ओर से बनाई जाती है और इसमें बहुत ही बारीक काम किया जाता है। यह रेशम के धागों से बनाई जाती है। पटोला डिजायन और पटोला साड़ी भी अब लुप्त होने की कगार पर है। इसका कारण है कि इसके बुनकरों को लागत के हिसाब से कीमत नहीं मिल पाती।
महाराष्ट्रियन साड़ी (Even Today The Trend of Wearing Saree is Everywhere)
महाराष्ट्र में खास साड़ी पहनी जाती है जो नौ गज लंबी होती है, इसे पैठणी कहते हैं। यह पैठण शहर में बनती है इस साड़ी को बनाने की प्रेरणा अजन्ता की गुफा में की गई चित्रकारी से मिली थी। इससे पहनने का अपना पारंपरिक स्टाइल है जो महाराष्ट्र की औरतों को ही आता है।
कांजीवरम साड़ी (Even Today The Trend of Wearing Saree is Everywhere)
कांजीवरम साड़ी को जांचने के लिए उसकी जरी को खुरच कर देखें, अगर उसके नीचे लाल सिल्क निकले तो इसका मतलब है कि आपकी कांजीवरम साड़ी असली है। असली बनारसी साड़ी के पल्लू में हमेशा 6 से 8 इंच लंबा प्लेन सिल्क फैब्रिक होता है। जो फैब्रिक असली होता है, वो दिखने में चमकदार होता है। कांजीवरम साड़ी ज्यादातर कोलकात में पहनी जाती है।
महेश्वरी साड़ी (Even Today The Trend of Wearing Saree is Everywhere)
यह साड़ी मुख्यत मध्य प्रदेश में पहनी जाती है। पहले यह सूती साड़ी ही बनाई जाती थी लेकिन अब धीरे-धीरे रेशम की भी बनाई जाने लगी है। इसका इतिहास काफी पुराना है। होल्कर वंश की महान शासक देवी अहिल्याबाई ने ढाई सौ साल पहले गुजरात से लाकर महेश्वर में कुछ बुनकरों को बसाया था और उन्हें घर, व्यापार और अन्य सुविधाएं दी थींं। यही बुनकर महेश्वरी साड़ी तैयार करते थे।
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