इंडिया न्यूज, New Delhi (Lalita Pawar Death Anniversary): एक्टिंग एक कला है, जो हर एक कलाकार को नहीं आता है। लेकिन कुछ कलाकार और उनके किरदार ऐसे होते हैं जो जेहन में जिंदगी भर के लिए अपनी छाप छोड़ देते हैं। ऐसे ही दो कलाकार है महाभारत के शकुनी मामा और रामायण की मंथरा।
और आज हम आपको इस आर्टिकल में इन महान दोनों कलाकारों में से एक कलाकार के डेथ ऐनिवर्सरी पर उनकी जिंदगी से जुड़ी ऐसी घटनाओं के बारे में बताने जा रहे हैं, जिससे आपकी रुह कंप जाएंगी। जी हां आप सही समझ रहें है हम बात कर रहें है रामायण की मंथरा यानी ऐक्ट्रेस ललिता पवार की। बता दें ललिता पवार का नाम पहले अंबा लक्ष्मण राव शगुन था और इनका जन्म 18 अप्रैल 1916 को नाशिक के रूढ़िवादी परिवार में हुआ था।
गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम शामिल
ललिता पवार ने मात्र 9 साल की उम्र में ऐक्टिंग की दुनिया में कदम रख दिया और उनकी पहली फिल्म 1928 में ‘राजा हरीशचंद्र’ आई , बता दें यह भारत की पहली मूक फिल्म है। इसके बाद ललिता ने कई मूक फिल्मों में काम किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई।इसके साथ ही ललिता ने अपने 70 साल लंबे ऐक्टिंग करियर में 700 से भी अधिक फिल्मों में काम कर गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम शामिल कर लिया।
चवन्नी के जमाने में 18 रुपये थी कमाई
ललिता पवार भले ही पढ़ी-लिखी नहीं थीं, लेकिन जब उन्होंने फिल्मों में मात्र 18 रुपये से काम करना शुरू किया तो देखते ही देखते वे कब अपने दौर की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली हिरोइनों के लिस्ट में शामिल हो गई पता ही नहीं चला। और इसके साथ ही उन्होंने 1988 तक फिल्मों में अपना दबदबा बनाए रखा।
एक थप्पड़ के वजह से लकवा मार दिया
ललिता पवार अपने करियर में एक के बाद एक सफलता की सीढ़िया चढ़ रही थीं, लेकिन एक फिल्म शूटिंग के हादसे ने उनकी जिंदगी को बदल के रख दी। दरअसल साल 1942 में ललिता पवार ऐक्टर भगवान दादा के साथ फिल्म ‘जंग-ए-आजादी’ के लिए शूट कर रही थीं तभी एक सीन में भगवान दादा को ललिता पवार को थप्पड़ मारना था। लेकिन गलती से थप्पड़ ललिता के कान पर लग गया और इससे उनकी आंख के पास की नस फट गई। जिसके तुरंत बाद ललिता को अस्पताल ले जाया गया, लेकिन गलत ट्रीटमेंट के कारण हालत और बिगड़ गई और उनके शरीर के एक हिस्से में लकवा मार दीया।
मौत के वक्त कोई नहीं था पास
24 फरवरी यानी आज के ही दिन 1998 में 81 साल की उम्र में ललिता पवार ने आखिरी सांस ली थी, बताया जाता है कि जब पुणे स्थित बंगले में ललिता पवार अपनी आखिरी सांस ले रही थी तब उस समय उनके घर पर परिवार का कोई भी सदस्य नहीं था। और जब ललिता के बेटे ने फोन किया और ललिता ने फोन नहीं उठाया तो घरवाले तुरंत भागे-भागे ललिता के बंगले पर पहुंचे, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। और ललिता पवार इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थी।
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