इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता है। यदि हम सभी मिलकर नियमों का पालन नहीं करेंगे तो कभी भी अनुशासन कायम नहीं किया जा सकेगा। वह भी तब जब लोगों के चुने हुए प्रतिनिधि इस तरह के प्रयास को महत्व न देते हुए अनुशासनहीनता दिखाएं। यह बातें बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कही। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में जनप्रतिनिधियों के असंसदीय व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि हुई है, जिससे लोकतांत्रिक संस्थानों की छवि खराब हुई है। हम सभी अनुशासन में रहें इसके लिए संयुक्त प्रयास जरूरी होते हैं। जिसका लोकतंत्र में विशेष महत्व होता है। वे संसद भवन एनेक्सी में 81वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन (एआईपीओसी) के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे।

शिष्टाचार के उच्चतम मानको का पालन जरूरी

बिरला ने कहा कि एक निर्वाचित जन प्रतिनिधि होने के नाते, एक सदस्य के पास कुछ विशेषाधिकार होते हैं और ये विशेषाधिकार, जो जिम्मेदारियों के साथ आते हैं, सांसदों के रूप में अपने कर्तव्यों को प्रभावी ढंग से और बिना किसी बाधा के निभाने के लिए होते हैं।

जनप्रतिनिधियों को आत्मनिरीक्षण की जरूरत

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि वर्तमान में इनके रवैये के चलते जनता की भावनाओं को बहुत आगात पहुंचा है। यदि जनता द्वारा चुने हुए जनप्रतिनिधि ही अपना आचरण सही नहीं रखेंगे तो आमजन से हम क्या उम्मीद कर सकते हैं। इस दौरान उन्होंने जनप्रतिनिधियों के रूप में सदस्यों द्वारा व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से उनके आचरण, अनुशासन और मर्यादा के बारे में आत्मनिरीक्षण करने का आह्वान किया। विधायिकाओं के सुचारू कामकाज से लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद मिलने की बात कहकर लोकसभा अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि विधायिकाओं को नियमों और परंपराओं के अनुसार जनहित में प्रभावी ढंग से कार्य करना चाहिए, ताकि लोगों की आशाएं और आकांक्षाएं पूरी हों और लोकतांत्रिक संस्थानों में उनका विश्वास बढ़े। संसद और अन्य विधानसभाओं में अनुशासन और मयार्दा बनाए रखने पर जोर देते हुए, बिरला ने याद दिलाया कि इस मुद्दे पर 1992, 1997 और 2001 में विभिन्न सम्मेलन आयोजित किए गए थे।

Connect With Us:- Twitter Facebook