India News (इंडिया न्यूज), MP Historical Fort: मध्य प्रदेश के रायसेन जिले में स्थित ऐतिहासिक किला न सिर्फ अपने गौरवशाली इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि यहां रमजान के दौरान निभाई जाने वाली 305 साल पुरानी परंपरा भी इसे अनोखा बनाती है। इस परंपरा के अनुसार, रमजान के महीने में हर दिन तोप दागकर इफ्तार (रोजा खोलने) और सेहरी का संकेत दिया जाता है। यह परंपरा नवाबी शासनकाल से चली आ रही है और आज भी उसी श्रद्धा और नियमों के साथ निभाई जाती है।
तोप की आवाज से खुलता है रोजा
रायसेन किले की प्राचीर से हर साल रमजान के महीने में तोप चलाई जाती है, जिसकी गूंज लगभग 30 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती है। मुस्लिम समाज इसी आवाज को सुनकर अपना रोजा खोलता और सेहरी समाप्त करता है। यह एक अनोखी परंपरा है, जो पूरे देश में सिर्फ कुछ ही स्थानों पर देखने को मिलती है।
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सिग्नल मिलने पर दागी जाती है तोप
इस तोप को चलाने की प्रक्रिया भी दिलचस्प है। किले से तोप दागने से पहले मार्कस वाली मस्जिद की मीनार पर लाल बल्ब जलाकर संकेत दिया जाता है। यह सिग्नल मिलते ही किले से तोप दागी जाती है। यह परंपरा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि अनुशासन और समन्वय का भी बेहतरीन उदाहरण प्रस्तुत करती है।
एक ही परिवार निभा रहा है जिम्मेदारी
तोप चलाने की यह जिम्मेदारी पीढ़ी दर पीढ़ी एक ही परिवार द्वारा निभाई जा रही है। जिला प्रशासन हर साल रमजान के लिए विशेष अनुमति और लाइसेंस जारी करता है, ताकि यह परंपरा निर्बाध रूप से जारी रह सके। ईद के बाद इस तोप को साफ कर सरकारी गोदाम में रख दिया जाता है। रायसेन किला अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। कहा जाता है कि यहां 16वीं सदी में 700 रानियों ने एक साथ जौहर किया था। इसके अलावा, किले में पारस पत्थर होने की कहानियां भी प्रचलित हैं, जो इसे रहस्यमयी बनाती हैं।
धार्मिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक
रायसेन किले की यह परंपरा धार्मिक समरसता और सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण का बेहतरीन उदाहरण है। प्रशासन और समाज के सामंजस्य से यह परंपरा न सिर्फ रायसेन की पहचान को बनाए रखे हुए है, बल्कि देशभर में इसकी विशिष्टता की गूंज भी सुनाई देती है।
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