India News (इंडिया न्यूज़), Madhya Pradesh Election 2023 (मनोज मनु): मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मिज़ोरम और राजस्थान इन राज्यों की राजनीति में चुनावी माहौल साफ़ देखने को मिल रहा है। एक तरफ जहां आरोप प्रत्यारोप का दौर जारी है। वहीं, राजस्थान, मध्य प्रदेश, मणिपुर और छत्तीसगढ़ में क़ानून व्यवस्था को लेकर भी चर्चा हो रही है। विपक्षी पार्टियां जहां NDA को संसद में भी घेर रही हैं। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली पर सवाल उठा रही हैं। वहीं समूचा NDA राजस्थान और छत्तीसगढ़ की क़ानून व्यवस्था को लेकर सवाल उठा रहे हैं। यह लगातार ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि वहां पर दलित पीड़ित और आदिवासियों पर किस तरह से अत्याचार हो रहा है।
कमलनाथ को ही अपने मुख्यमंत्री का चेहरा मान रही कांग्रेस
इसी बीच मध्यप्रदेश से एक बयान सामने आया है। मध्य प्रदेश की बड़ी आदिवासी नेता पूर्व मुख्यमंत्री जमुना देवी के भतीजे उमंग सिंगार की तरफ से यह बयान सामने आया है। कांग्रेस की 18 महीने की सरकार में वह वन मंत्री और गंधवानी से विधायक भी हैं। उन्होंने मध्यप्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की मांग कर दी है। ये मांग उन्होंने ठीक उस वक्त की है जब कांग्रेस एकजुटता का संदेश देते हुए कांग्रेस कमलनाथ को ही अपने मुख्यमंत्री का चेहरा मान रही है।
ग्वालियर में हुई चुनावी सभा में खुद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने इस बात के संकेत दिए हैं। वहीं दिग्विजय सिंह भी घूम-घूम कर यही बात बोल रहे हैं कि हमारा मुख्यमंत्री का चेहरा कोई और नहीं बल्कि कमलनाथ ही हैं। मगर हाल ही में एक बड़े आदिवासी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया के चुनाव अभियान समिति का संयोजक बनाया गया है। जिस कारण इस नियुक्ति ने सबके कान खड़े कर दिए हैं। कांग्रेसी विधायक उमंग सिंगार ने भी इस नियुक्ति के कुछ दिन बाद मध्य प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने को लेकर मांग उठा दी।
दोनों ही कितनी पार्टियों के लिए आदिवासियो संख्या है महत्वपूर्ण
जिसे लेकर कमलनाथ और समूची कांग्रेस के कान खड़े हो गए। ऐसे में अब यहां ये आपको समझना होगा कि असल में 6 अगस्त को एक रैली उमंग सिंगार के नेतृत्व में निकाली गई। साथ ही टाट्या भील की प्रतिमा का अनावरण किया गया। इस अवसर पर मध्य प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की जो बात की गई वो हज़ारों की संख्या में आदिवासियों के सामने कही ने कहीं उमंग सिंगार रही हैं। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि जब तक प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री न बन जाए तब तक आप घर मत बैठना प्रदेश में आदिवासी वोट बैंक और आदिवासियो की संख्या दोनों ही पार्टियों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है इसका एक समीकरण मैं आपको बताता हूं।
मध्यप्रदेश में आदिवासियों की आबादी 2 करोड़ है। वहीं 43 आदिवासी समूह हैं। वहीं एमपी में गोंड समुदाय की आबादी 53 लाख है। कोल समाज के लोगों की आबादी 12 लाख है। इसके अलावा 47 लाख सहरिया और कोरकू सहित दूसरी जातियां हैं। मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें ST के लिए आरक्षित हैं। मध्य प्रदेश एक ऐसा राज्य है जहां एक तरफ सबसे ज़्यादा आदिवासी संख्या है। इसी कारण दोनों पार्टियां BJP या कांग्रेस दोनों हर संभव प्रयास कर रही हैं। लेकिन इसे बीजेपी की बिडम्बना बोला जाता है। सबसे अधिक आबादी होने के बावजूद भी आज तक इस राज्य का मुख्यमंत्री आदिवासी नहीं बना आदिवासी मुख्यमंत्री के बनाने की मांग नई नहीं बल्कि बहुत पुरानी है।
BJP-कांग्रेस के लिए दोधारी तलवार जैसी हालात
बता दें कि आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की मांग दुधारू तलवार जैसी है। एक तरफ जहां कांग्रेस में आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने की मांग देखी जा रही है। वहीं बीजेपी में भी इस मांग लेकर माथे पर शिकन कम नहीं है। मनोज मनु ने कहा बीजेपी में ये उम्मीद की जा रही है कि आने वाले केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में प्रदेश के कुछ आदिवासी चेहरों को जगह मिल सकती है। साथ ही अगर नहीं मिली तो एक बार प्रदेश का आदिवासी वोटर फिर BJP के लिए परेशानी बन सकता है। इसका मतलब साफ़ है कि मध्य प्रदेश में आदिवासी मुख्यमंत्री की मांग BJP और कांग्रेस के लिए दुधारी तलवार जैसी है।
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