यहां काली माता की मूर्ति और स्वास्तिक के निशान है…’अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर अजमेर के डिप्टी मेयर का बड़ा दावा
Adhai din ka jhonpra
India News( इंडिया न्यूज़),Adhai din ka jhonpra: अजमेर के ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ को लेकर एक नया विवाद उठ खड़ा हुआ है। अजमेर के डिप्टी मेयर, नीरज जैन ने दावा किया है कि ‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ कभी एक संस्कृत पाठशाला थी, जो अब ASI (आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया) द्वारा संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित की गई है। नीरज जैन ने यह भी कहा कि वहां पर ढाई सौ से अधिक मूर्तियां मिली हैं, जिनमें काली माता की मूर्ति, कमल के चिन्ह और स्वास्तिक के चिन्ह भी शामिल हैं, जो मंदिरों और पाठशालाओं में पाए जाते हैं।
अजमेर डिप्टी मेयर का मानना..
नीरज जैन का मानना है कि यह स्थान पहले जैन मंदिर, हिंदू मंदिर और पाठशाला का हिस्सा था। उनका यह भी कहना है कि वहां पर विदेशी आक्रांताओं ने धार्मिक स्थलों को नष्ट किया था और अब कुछ समुदाय विशेष ने इस स्थान को मस्जिद में बदलने का प्रयास किया है। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से यह मांग की है कि अतिक्रमण और अवैध निर्माण को रोका जाए और स्मारक की रक्षा की जाए।
‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ की स्थिति और विवाद
‘अढ़ाई दिन का झोपड़ा’ की सीढ़ियों पर कुछ लोग दुकाने चला रहे हैं, और अंदर जो जालियां लगी हैं, उन पर स्वास्तिक के चिन्ह पाए गए हैं। इसके अलावा, इस संरचना के कुछ कमरों को ताला भी लगा हुआ है, और गुंबदों को लेकर भी कई तरह के दावे किए जा रहे हैं।
इतिहासकार डॉ. सैयद लियाकत हुसैन ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना था कि दरगाह के मामले को ‘अढ़ाई दिन के झोपड़े’ से जोड़ने से कन्फ्यूजन पैदा हो सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति में ऐसे निशान आम हैं, और कई मंदिरों के गुंबद भी दरगाह के गुंबदों से मिलते हैं। डॉ. हुसैन का कहना था कि गुंबद और मीनार का आर्किटेक्चर भारतीय संस्कृति का हिस्सा है और इसे हिंदू-मुसलमान विवाद से जोड़ने की बजाय आने वाली पीढ़ी को इसे एक सामान्य संस्कृति के रूप में देखना चाहिए। इस विवाद ने धार्मिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से दोनों समुदायों के बीच और चर्चाएं शुरू कर दी हैं। अजमेर से संवाददाता विष्णु शर्मा की रिपोर्ट