पूर्व भारतीय हॉकी खिलाड़ी असलम शेर खान ने कहा है कि भारत का पारंपरिक खेल खो-खो अब विश्व स्तर पर तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है। उन्होंने इसे हॉकी की तरह एक इंडिजिनस गेम बताते हुए कहा कि यह खेल एशियाई देशों में भी प्रमुख स्थान बना सकता है। असलम शेर खान ने कहा- “Ultimate Kho Kho League इस दिशा में एक बड़ी उपलब्धि है। जिस गति और तरीके से खेल का विकास हो रहा है, वह वाकई रोमांचक है। मैं इसे देखकर आनंदित हूं,”
“भारत-पाक मैचों का जादू हमेशा बना रहता है”
असलम शेर खान ने भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी खेल मुकाबले को भीड़ आकर्षित करने वाला बताया। अगर खो-खो का मैच भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी शहर में हो, तो कम से कम 5000 लोग उसे देखने आएंगे। यह मुकाबला सिर्फ खेल नहीं, भावना भी है। खेल को राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी जोड़ा कि चाहे वह क्रिकेट हो, हॉकी या खो-खो — भारत और पाकिस्तान के बीच मैचों की परंपरा हमेशा से भीड़ खींचने वाली रही है। यह सिर्फ मुकाबला नहीं, बल्कि प्रतिस्पर्धा का प्रतीक है।
1975 के हॉकी फाइनल का ज़िक्र
असलम शेर खान ने 1975 में कुआलालंपुर (मलेशिया) में हुए भारत-पाकिस्तान हॉकी फाइनल को याद करते हुए कहा: “उस समय मलेशिया की आबादी करीब 6.5 करोड़ थी, और वह मैच ऐसा था कि पूरे भारत ने एक मिनट के लिए साँसें थाम ली थीं। वह सिर्फ खेल नहीं था, एक जज़्बा था।”
भविष्य की योजना:
खान ने कहा कि उन्हें जिम्मेदारी दी गई है कि खो-खो को एशियाई स्तर पर एक ‘ताकतवर खेल शक्ति’ बनाया जाए। यह भारत का खेल है, और हमें इसे एशिया के कोने-कोने में लोकप्रिय बनाना है। जैसे हॉकी को सम्मान मिला था, वैसा ही खो-खो भी डिज़र्व करता है,” उन्होंने जोड़ा।