महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव में जन्मी प्रियंका के लिए खेलों का रास्ता आसान नहीं था। समाजिक दबाव और पारंपरिक विचारधाराओं के कारण उनके परिवार ने आठवीं कक्षा के बाद उनका खेलना बंद कर दिया था।

 अभ्यास और धैर्य से मिली सफलता
प्रियंका ने अपने स्कूल के प्रिंसिपल की मदद से गुप्त रूप से अभ्यास करना जारी रखा। उनकी मेहनत ने उन्हें 22 स्वर्ण पदक और 3 रजत पदक दिलाए, जिससे उनकी पहचान बन गई।

साउथ एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व
प्रियंका ने साउथ एशियन गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए स्वर्ण पदक जीता, जो उनके करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ।

कैरियर और खेल के बीच संतुलन
आज प्रियंका एयरपोर्ट अथॉरिटी और महाराष्ट्र सरकार के साथ काम कर रही हैं, और खेल के साथ अपने पेशेवर करियर को भी संतुलित कर रही हैं। यह दिखाता है कि समय प्रबंधन और समर्पण से दोनों को सफलतापूर्वक जोड़ा जा सकता है।

गांव में मानसिकता बदलने में प्रियंका की भूमिका
प्रियंका ने न केवल अपनी सफलता से ग्रामीण समाज में बदलाव लाया, बल्कि अब गांव के लोग अपनी बेटियों को भी खेलों में भेजने लगे हैं। उनका संदेश है कि महिलाएं घर और करियर दोनों को संभाल सकती हैं।