India News(इंडिया न्यूज), Paris Olympics 2024: ओलंपिक में हॉकी के लिए राजकुमार के सेलेक्ट होते ही न सिर्फ गाजीपुर का बल्कि पूरे देश का सपना पूरा होने जा रहा है। बता दें कि गाजीपुर से थोड़ी दूर करमपुर के राजकुमार ने अपनी बेजोड़ मेहनत और त्याग के कारण अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना ली है। आइए इस खबर में हम आपको बताते हैं पूरी जानकारी।
गाजीपुर का सपना पूरा करने चले राजकुमार
करीब तीन हजार की आबादी वाले करमपुर गांव के सैकड़ों लड़कों ने हॉकी स्टिक थामकर ओलंपिक में खेलने का सपना देखा, लेकिन इसे पूरा करने का मौका सिर्फ राजकुमार पाल को मिला। ‘गाजीपुर के राजकुमार’ के नाम से मशहूर मिडफील्डर की ख्वाहिश पेरिस में अच्छा प्रदर्शन कर हर अधूरे सपने को पूरा करने की है। वाराणसी से करीब 40 किलोमीटर दूर गाजीपुर के करमपुर गांव के मेघबरन स्टेडियम में हॉकी का ककहरा सीख रहे बच्चों के लिए राजकुमार प्रेरणास्रोत बन गए हैं। एक ऐसा गांव जहां के 400 से ज्यादा लड़कों को हॉकी के जरिए रोजगार तो मिला, लेकिन भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका नहीं मिला। इनमें राजकुमार के दो भाई जोखन और राजू भी शामिल हैं, जो देश के लिए नहीं खेल सके।
संघर्षों के दिन की बताई कहानी
अपने पहले ओलंपिक के लिए रवाना होने से पहले दिए इंटरव्यू में राजकुमार ने कहा, कि ‘हम तीनों भाई हॉकी खेलते हैं। मझला भाई भारतीय टीम के कैंप में रहा है और बड़ा भाई राष्ट्रीय स्तर पर खेल चुका है। दोनों भारत के लिए नहीं खेल सके और अब एक रेलवे और दूसरा सेना के लिए खेलता है।’ 26 वर्षीय मिडफील्डर ने कहा, “मेरे गांव के 400 से ज़्यादा लड़कों को हॉकी के ज़रिए नौकरी मिली, लेकिन कोई भी इस स्तर पर नहीं खेला। मेरे गांव के लोग मेरी तरफ़ देख रहे हैं और मैं अपने भाइयों और पेरिस में उन सभी के अधूरे सपनों को पूरा करने में कोई कसर नहीं छोड़ूंगा।
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त्याग को किया याद
“उन्होंने अपने कोच तेज बहादुर सिंह की मदद से मुश्किलों के बीच हॉकी के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाया। वो दो साल परिवार के लिए बहुत मुश्किल भरे थे और मुझे लगा कि मैं अब और नहीं खेल पाऊंगा, लेकिन मेरे परिवार ने हार नहीं मानी। मैं टोक्यो ओलंपिक के लिए नहीं चुना जा सका, लेकिन निराश हुए बिना मैंने कड़ी मेहनत की और अब मैं पेरिस जा रहा हूं। जब मैं पेरिस के मैदान पर कदम रखूंगा, तो मुझे ये सारे त्याग याद आएंगे