इंडिया न्यूज़ (दिल्ली): भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और हेमा कोहली की पीठ ने एक भारी भरकम रिपोर्ट जो तीन सदस्यों की विशेषज्ञ समिति द्वारा सौपी गई थी, उसकी जांच करने के बाद टिपण्णी दी की 29 मोबाइल फोनो में पेगासस सॉफ्टवेयर नही मिला, 29 में से 5 उपकरणों में कुछ मैलवेयर पाए गए लेकिन वही पेगासस नहीं था.

पीठ ने कहा की “हम तकनीकी समिति के बारे में चिंतित हैं कि 29 फोन दिए गए थे … 5 फोन में कुछ मैलवेयर पाए गए लेकिन तकनीकी समिति का कहना है कि इसे पेगासस नहीं कहा जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस आरवी रवींद्रन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने इस साल जुलाई में कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। समिति में आलोक जोशी (पूर्व आईपीएस अधिकारी) और डॉ. संदीप ओबेरॉय, अध्यक्ष, उप समिति (अंतर्राष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/अंतर्राष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग/संयुक्त तकनीकी समिति) भी शामिल थे.

पीठ ने यह भी कहा की भारत सरकार ने समिति की सहायता नहीं की, कोर्ट ने कहा “तकनीकी समिति का कहना है कि भारत सरकार ने इसमें मदद नहीं की है।”

अदालत ने यह भी संकेत दिया कि वह इस बात पर विचार करेगी कि मामले को कैसे आगे बढ़ाया जाए और वह समिति की रिपोर्ट वेबसाइट पर भी अपलोड कर सकता है। इसके बाद मामले को चार सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया गया.

समिति की रिपोर्ट ने निगरानी और निजता के अधिकार में सुधार, राष्ट्र की साइबर सुरक्षा को बढ़ाने, नागरिकों के निजता के अधिकार की सुरक्षा को मजबूत करने और निगरानी के संबंध में शिकायत करने के लिए एक तंत्र बनाने की सिफारिश की.

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें यह जानने का अधिकार है कि किस तरह का मैलवेयर आदि पाया गया। इसलिए उन्होंने रिपोर्ट की कॉपी मांगी है। अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने भी ऐसे ही मांग की.

क्या है पेगासस विवाद

अदालत उन आरोपों की जांच की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था कि एक इज़राइल कंपनी द्वारा बनाए गए पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल भारत सरकार द्वारा भारतीय पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, वकीलों, अधिकारियों, सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश और अन्य लोगों की जासूसी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जैसे मोबाइल फोन के माध्यम से की गई या नही.

इज़राइल स्थित स्पाइवेयर फर्म एनएसओ पेगासस स्पाइवेयर बनाती है, जिसका दावा है कि यह केवल “सत्यापित सरकारों” को बेचा जाता है, न कि निजी संस्थाओं को, हालांकि कंपनी यह नहीं बताती है कि वह किन सरकारों को यह सॉफ्टवेयर बेचती है.

भारतीय समाचार पोर्टल द वायर सहित समाचार माध्यमों के एक अंतरराष्ट्रीय संघ ने हाल ही में रिपोर्टों की एक श्रृंखला जारी की थी जिसमें कहा गया था कि उक्त सॉफ़्टवेयर का उपयोग भारतीय पत्रकारों, कार्यकर्ताओं, वकीलों, अधिकारियों सहित कई व्यक्तियों के मोबाइल उपकरणों के माध्यम से उनकी कथित रूप से जासूसी की गई.

रिपोर्ट में उन फ़ोन नंबरों की सूची का उल्लेख किया गया था जिन्हें संभावित लक्ष्य के रूप में चुना गया था । एमनेस्टी इंटरनेशनल की एक टीम द्वारा विश्लेषण करने पर पाया है था की कुछ नंबरों की जासूसी पेगासस के माध्यम से की गई, वही कुछ में प्रयास किया गया.

इन रिपोर्ट्स के बाद एडवोकेट एमएल शर्मा, राज्यसभा सांसद जॉन ब्रिटास, हिंदू समूह प्रकाशन के निदेशक एन राम और एशियानेट के संस्थापक शशि कुमार, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया, पत्रकार रूपेश कुमार सिंह, इप्सा शताक्षी, परंजॉय गुहा ठाकुरता, एसएनएम आबिदी और प्रेम शंकर झा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थी, तब सुप्रीम कोर्ट के तीन विशेषज्ञों की समिति बना कर जांच का आदेश दिया था.