India News (इंडिया न्यूज), Chhatrapati Sambhaji Maharaj: भारत के इतिहास में ऐसी कई घटनाएँ दर्ज हैं जो साहस, बलिदान और क्रूरता की पराकाष्ठा को प्रदर्शित करती हैं। इन्हीं में से एक घटना है मुगल बादशाह औरंगज़ेब और मराठा साम्राज्य के दूसरे छत्रपति संभाजी महाराज के बीच संघर्ष की। यह घटना न केवल मराठा साम्राज्य के इतिहास में, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की गाथा में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

संभाजी महाराज का परिचय

छत्रपति संभाजी महाराज, महान मराठा योद्धा और शिवाजी महाराज के पुत्र, एक अद्वितीय रणनीतिकार, कवि और वीर योद्धा थे। उन्होंने अपने पिता शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य का नेतृत्व किया। अपने अद्वितीय सैन्य कौशल और अडिग साहस के कारण, वे मुगल साम्राज्य के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए।

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औरंगज़ेब और मराठा साम्राज्य का संघर्ष

औरंगज़ेब का सपना पूरे भारत को अपने साम्राज्य में मिलाने का था, लेकिन मराठा साम्राज्य ने हमेशा इस उद्देश्य को असफल किया। औरंगज़ेब और संभाजी महाराज के बीच वर्षों तक संघर्ष चलता रहा। संभाजी महाराज ने अपनी अद्भुत रणनीतियों से मुगलों को कई बार हराया। लेकिन, 1689 में एक धोखे के कारण संभाजी महाराज को गिरफ़्तार कर लिया गया।

संभाजी महाराज की गिरफ़्तारी और यातना

औरंगज़ेब ने संभाजी महाराज को पकड़ने के बाद उन्हें क्रूरतम यातनाएँ दीं। औरंगज़ेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन संभाजी महाराज ने इसे सिरे से नकार दिया। उनके दृढ़ता और साहस ने मुगल साम्राज्य को हिला दिया। उनकी यातनाएँ कई दिनों तक चलीं, जिसमें उनका शरीर टुकड़ों में काटा गया।

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मृत शरीर का अपमान

इतिहास में दर्ज है कि औरंगज़ेब ने संभाजी महाराज के शरीर के टुकड़ों को भी अपमानित किया। कथाओं के अनुसार, उनके शरीर के टुकड़ों को भीमा नदी में फेंक दिया गया था। यह नदी महाराष्ट्र के पुणे और सोलापुर जिलों के बीच बहती है। मराठा साम्राज्य के लोगों ने इस कृत्य को अपने राजा का घोर अपमान माना और इस घटना ने मराठा योद्धाओं में और अधिक आक्रोश भर दिया।

मराठाओं की प्रतिक्रिया

संभाजी महाराज की शहादत के बाद, मराठाओं में मुगलों के प्रति प्रतिशोध की भावना और अधिक प्रबल हो गई। उनकी मृत्यु ने मराठा साम्राज्य को टूटने नहीं दिया, बल्कि उन्हें और संगठित किया। संभाजी महाराज का बलिदान मराठाओं के लिए एक प्रेरणा बन गया।

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इतिहास से सीख

छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान हमें साहस, अडिगता और अपने धर्म और स्वाभिमान के लिए लड़ने की प्रेरणा देता है। भीमा नदी, जहाँ उनके शरीर के टुकड़े फेंके गए थे, आज भी इस ऐतिहासिक घटना की साक्षी है। यह घटना हमें यह भी सिखाती है कि अत्याचार और क्रूरता के सामने साहस और दृढ़ निश्चय हमेशा विजयी होते हैं।

छत्रपति संभाजी महाराज और औरंगज़ेब के बीच का संघर्ष भारतीय इतिहास का एक ऐसा अध्याय है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह कहानी मराठा साम्राज्य के गौरव और वीरता को सजीव करती है और हमें अपने इतिहास और संस्कृति के प्रति गर्व करने का अवसर प्रदान करती है।

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