बिज़नेस डेस्क/नई दिल्ली (The famous ‘Marcha Rice’ of Bihar is known for its aroma and deliciousness): बुधवार को बिहार के किसानों को केंद्र सरकार ने आज एक खुशखबरी सुनाई है। यह खुशखबरी खास कर बिहार में चावल की खेती करने वाले किसानों के लिए है। जीआई रजिस्ट्री के अनुसार, बिहार के प्रसिद्ध ‘मार्चा चावल’ को भौगोलिक संकेत (Geographical Indication) टैग  से सम्मानित किया गया है। आपको बता दें कि बिहार का मश्हूर ‘मार्चा चावल’ अपने सुगंध और स्वादिष्टता के लिए जाना जाता है।

  • जानिए मार्चा चावल के बारे में
  • जीआई के लिए दिया गया था आवेदन
  • मार्चा चावल के उत्पादन को मिलेगा बढ़ावा- कुमार सर्वजीत
  • इन जगहों पर होती है इस चावल की खेती
  • क्या होता है जीआई टैग ?

जानिए मार्चा चावल के बारे में

मार्चा चावल बिहार के पश्चिम चंपारण जिले में पाई जाने वाली चावल की एक छोटी देशी खेती है। इसका नाम मार्चा चावल इसके लिए है क्योंकि आकार में इसके दाने काली मिर्च जैसे लगते हैं इसलिए इसे ‘मिर्चा’ (हिंदी में काली मिर्च) या ‘मार्चा राइस’ के नाम से जाना जाता है।

जीआई के लिए दिया गया था आवेदन

जीआई रजिस्ट्री के जर्नल के अनुसार चावल के लिए जीआई टैग की मांग करने वाले आवेदन को स्वीकार कर लिया है। जर्नल के मुताबिक यह (चावल) स्थानीय रूप से मिर्चा, मरछैया, मारीचैट आदि के रूप में भी जाना जाता है। इसके पौधें,  अनाज और गुच्छे में एक अनूठी सुगंध होती है जो इस चावल को अलग बनाती है।

मार्चा चावल के उत्पादन को मिलेगा बढ़ावा- कुमार सर्वजीत

विकास पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए, बिहार के कृषि मंत्री कुमार सर्वजीत ने समाचार एजेंसी पीटीआई को बताया “इससे मार्चा चावल के उत्पादन को और बढ़ावा मिलेगा। यह मार्चा चावल की खेती में लगे किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य प्राप्त करने में भी मदद करेगा।

इन जगहों पर होती है इस चावल की खेती

आपको बता दें कि मार्चा चावल के प्रमुख उत्पादक क्षेत्रों में पश्चिम चंपारण जिले के मैनाटांड़, गौनाहा, नरकटियागंज, रामनगर और चनपटिया ब्लॉक शामिल हैं।

क्या होता है जीआई टैग ?

जीआई उन उत्पादों पर इस्तेमाल किया जाने वाला एक चिन्ह है जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है और उन गुणों या प्रतिष्ठा से युक्त होते हैं जो उस मूल के कारण होते हैं।

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