India News(इंडिया न्यूज),Holi 2025: उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह की होली पूरी दुनिया में मशहूर है। वारिस अली की दरगाह इस बात की मिसाल है कि रंगों का कोई धर्म नहीं होता। होली पर रंगों की खूबसूरती सभी धर्मों के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती है। हर साल की तरह इस बार भी दरगाह पर सभी धर्मों के लोगों ने एक साथ गुलाल और गुलाब से होली खेली। लोगों ने एक-दूसरे को रंग लगाकर होली खेली और आपसी भाईचारे की अनूठी मिसाल पेश की।

बाराबंकी के देवा में स्थित सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की मजार का निर्माण उनके हिंदू मित्र राजा पंचम सिंह ने कराया था। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह ने समाज को यह संदेश भी दिया कि भगवान ही राम हैं और राम ही भगवान हैं। शायद इसीलिए होली ही नहीं बल्कि मजार के निर्माण के बाद से ही यह स्थान हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश देता आ रहा है।

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जुलूस में शामिल होते हैं सभी धर्मों के लोग

इस दरगाह पर होली खेलने की परंपरा बहुत पुरानी है। हाजी वारिस अली शाह के समय से दरगाह पर होली खेली जाती रही है, जो आज भी जारी है। उस समय होली के दिन हाजी वारिस अली शाह बाबा के भक्त गुलाल और गुलाब के फूल लेकर आते थे और उनके चरणों में रखकर होली खेलते थे। होली के दिन दरगाह के कौमी एकता गेट से लोग नाचते-गाते जुलूस की शक्ल में निकलते हैं। जुलूस देवा कस्बे से होता हुआ दरगाह पहुंचता है। इस जुलूस में सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं।

गुलाल और गुलाब से खेली जाती है होली

इस मौके पर देवा शरीफ आए लोगों ने बताया कि यहां होली खेलने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है, जो ब्रिटिश सरकार के समय से चली आ रही है। यहां गुलाल और गुलाब से होली खेली जाती है। होली के दिन देश के कोने-कोने से सभी धर्मों के लोग यहां आते हैं। एक दूसरे को रंग और गुलाल लगाकर भाईचारे की मिसाल पेश की। वहीं देवा के वारसी होली कमेटी के अध्यक्ष शहजादे आलम वारसी ने बताया कि दरगाह पर काफी समय से होली खेली जाती है। इसमें सभी धर्मों के लोग हिस्सा लेते हैं। यहां दरगाह पर कई क्विंटल गुलाल और गुलाब के फूलों से होली खेली जाती है।

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