India News(इंडिया न्यूज़), Holi 2025: इतिहासकार बताते हैं कि मुग़ल बादशाह होली के रंग में डूबने के बड़े शौकीन थे। अकबर महान ने अपनी रानी जोधाबाई के साथ, तो जहांगीर ने नूरजहाँ के साथ धूमधाम से होली मनाई। शाहजहाँ के ज़माने में इसे “ईद-ए-गुलाबी” या “आब-ए-पाशी” कहा जाता था। यानी, गुलाबी पानी की बौछार और रंगों की बरसात। इस दौरान शाही महलों में फूलों से बने रंग और इत्र वाले फव्वारे छोड़े जाते थे। कहते हैं, बादशाह सुबह सबसे पहले अपनी बेगम के साथ होली खेलते, फिर आम लोगों को गुलाल लगाते।
- मुसलमान भी मनाते थे होली
- इस तरह तैयार होता था शाही रंग
- अंग्रेज़ों ने लगाई होली पर पाबंदी
मुसलमान भी मनाते थे होली
मशहूर शायर अमीर खुसरो भी होली के दीवाने थे। वो फूलों के रंग और गुलाब जल से होली मनाते, जबकि सूफ़ी दरगाहों में कव्वालियों और रंगों का मेल जमता था। बहादुर शाह ज़फ़र के वक्त तक ये रिवायत क़ायम रही। उनके दरबारी मंत्री उन्हें रंग लगाने पहुंचते, और शाही हौज़ में टेसू व गुलाब के फूलों से बना रंग भरा जाता था।
इस तरह तैयार होता था शाही रंग
मुग़लों के लिए होली का रंग बनाना भी एक कला था। महीनों पहले से टेसू और गुलाब के फूल इकट्ठे किए जाते। इन्हें पानी में उबालकर ख़ुशबूदार रंग तैयार किया जाता, जिसे हौज़ों में भरकर रखा जाता था। शाही हरम में बेगमें इत्र मिले गुलाब जल से एक-दूसरे को सराबोर करतीं। दिलचस्प बात ये है कि उस दौर में केमिकल वाले रंगों का चलन नहीं था, सब कुछ प्राकृतिक चीज़ों से तैयार होता था।
अंग्रेज़ों ने लगाई होली पर पाबंदी
मुग़लों के उलट अंग्रेज़ों को होली रास नहीं आई। ब्रिटिश राज में कई इलाक़ों में होली मनाने पर पाबंदी लगा दी गई। दरअसल, अंग्रेज़ होली के उत्साह को “अनियंत्रित” और “अशिष्ट” मानते थे। उन्हें डर था कि भीड़भाड़ के दौरान विद्रोह या हिंसा फैल सकती है। कुछ रिकॉर्ड्स के मुताबिक, 19वीं सदी में बंगाल और बिहार में होली के जुलूसों पर प्रतिबंध लगाया गया। लोगों को डराया जाता कि अगर वो रंग खेलेंगे, तो जुर्माना या जेल हो सकती है।