India News (इंडिया न्यूज़), Lantrani Review, दिल्ली: लंतरानी एक शानदार फिल्म है जो सिनेमाघर में दस्तक दे चुकी है। इस फिल्म के नाम का मतलब जाना जाए तो बड़ी-बड़ी हगने वाला या फिर कनपुरिया, उन्नाव, लखनऊ, फतेहपुर में अलग-अलग मतलबों के साथ जाना जाता है। जिनमें से कुछ ज्यादातर जल्दबाजी में बात को आगे आगे करना, किसी की बात में घुसना या फिर बकैती करना शामिल है। ऐसे में सभी मतलबों के साथ फिल्म के अंदर तीन अलग-अलग कहानियों को दिखाया गया है। यह फिल्म नेशनल अवार्ड जीतने वाले तीन डायरेक्टर्स द्वारा बनाई गई है। जो आप zee5 पर स्ट्रीम हो रही है। ऐसे में क्या आप भी यह फिल्म देखना चाहते हैं तो उससे पहले इस रिव्यू को जरूर पढ़ें।

क्या है फिल्म का थिम?

लंतरानी एक थियोलॉजी फिल्म है। एक ऐसी फिल्म जिसमें एक ही समय पर कई अलग-अलग कहानी दिखाई जाती है। जिनका एक दूसरे के साथ कोई भी संबंध नहीं होता। इस फिल्म में भी तीन अलग कहानियों को दिखाया गया है। जिसमें हुड़ हुड़ दबंग, धरना जारी है और सैनेटाइज्ड न्यूज के जरिए पेशकश दी गई है। इन सभी कहानियों का आपस में कोई संबंध नहीं है, लेकिन इसके बावजूद भी इनका एक संबंध जरूर है वह है लंतरानी।

क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म की कहानी के बारे में बात कर तो पहली कहानी हुड हुड दबंग एक पुलिस सिपाही और एक मुजरिम के बारे में है। सिपाही जिंदगी में अपनी आखिरी पुड़क पर आ चुका है। जिसमें वह अपने साथ एक मुजरिम को पेशी के लिए ले जा रहा है। आधे घंटे की कहानी में जिंदगी और समाज के अलग-अलग दायरे को दिखाया जाता है। Lantrani Review

दूसरी कहानी धरना जारी है एक महिला प्रधान और उसके पति की कहानी है। जिसकी कुछ मांगे हैं। जिन्हें लेकर वह अपने जिला डेवलपमेंट ऑफिसर के दफ्तर में धरना देकर बैठ जाती है।

आखिर में तीसरी कहानी सैनेटाइज्ड न्यूज के बारे में है। इसमें मीडिया जगत और वहां काम करने वाले पत्रकारों और दूसरे वैकेंसी के मजदूरों के बारे में बताया गया है।

तीनों कहानी एक दूसरे से बेहद अलग है। तीनों कहानी में वक्त के साथ-साथ सच का आईना सामने आता है, लेकिन सब कुछ सिचुएशन है।

कैसी है फिल्म?

फिल्म की खास बातों के बारे में बताएं तो इसमें सबसे खास चीज फिल्म की जिज्ञासुता को दिखाया गया है। फिल्म की हर कहानी बेहतरीन तरीके से पेश की गई है। जो आधे घंटे में पूरी तरीके से अपनी चीज को सामने रखती है। ऐसे में आप कहानी देखते समय बोर तो बिल्कुल नहीं होंगे। फिल्म की हर कहानी अपने साथ एक सवाल खड़ा करती है लेकिन जवाब नहीं देती है। क्योंकि जिन मुद्दों पर सवाल खड़ा किया गया है। उनका जवाब मिर्च मसाला और हैप्पी एंडिंग वाली फिल्मों में ही मिलता है। सच बात यह है कि इन सभी सवालों का जवाब आज तक हम लोग अपनी असल जिंदगी में ढूंढ रहे हैं।

कैसी थी किरदारों की एक्टिंग?

किरदारों की एक्टिंग की बात की जाए तो सबसे ज्यादा चौंकाने वाला काम जॉनी लीवर ने किया है। इससे पहले उन्होंने कभी भी इस तरह का कोई रोल नहीं निभाया। वह ज्यादातर कॉमेडी किरदारों में नजर आते थे लेकिन इस बार उन्होंने अपनी किरदार को काफी खूबसूरती से दिखाया। यह कहानी आपको हसांती जरूर है लेकिन सिचुएशन तरीके से आपको हंसने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ती।

दूसरी कहानी में जितेंद्र कुमार उर्फ जीतू भैया और निमिषा सजयन को दिखाया गया है। जो अपने किरदार को बढ़ा चढ़ा कर दिखाते हैं। इसके अलावा जिसू सेनगुप्ता, भगवान तिवारी और बोलोराम दास ने अपनी अपनी किरदारों को शानदार तरीके से निभाया है। Lantrani Review

कैसा रहा फिल्म का डायरेक्शन?

फिल्म के डायरेक्शन की बात की जाए तो हुड़-हुड़ दबंग का डायरेक्शन कौशिक गांगुली ने किया है। कौशिक एक बंगाली सिनेमा के बड़े नाम है। अपने काम से वह कई बार अपने नाम को आगे कर चुके हैं। कहानी की हर सीन में कुछ ना कुछ अलग तरीके से कहानी दिखाई जाती है। उन्होंने अपनी कहानी में इनसिक्योर पुलिस वाले की कहानी को जोड़ा है। समाज के नजरियो में घिनौने काम करने वाले मुजरिम की कहानी को भी दिखाया गया है।

दूसरी कहानी धरना जारी है। पंजाबी सिनेमा के डायरेक्टर गुरविंदर सिंह द्वारा डायरेक्ट किया गया है। जिन्होंने प्रधान परिवार के बारे में स्पष्ट चेहरा दिखाया है। जिनका निचली जाति से होना भी श्राप बन गया है। प्रधान बनने के बाद भी प्रदान की शक्तियां उनके पास नहीं है। प्रधान की गदी पर बैठे इस महिला को कई साल हो जाते हैं। लेकिन इस कहानी में कोई हैप्पी एंडिंग नहीं नजर आती। फिल्म के अंदर सरकारी दफ्तर और सरकारी बाबू की चीजों को भी दिखाया गया है। इसके साथ ही खास बात यह है की रियल लोकेशंस पर इन चीजों को शूट किया गया है। जिससे गुरविंदर सिंह की खासियत के बारे में पता चलता है कि वह कितनी सफाई से कम बजट के अंदर शानदार फिल्म बना सकते हैं।

तीसरी कहानी में असम सिनेमा के डायरेक्टर भास्कर हजारिका ने डायरेक्शन किया है। उन्होंने करोड़ों कल को बैकग्राउंड में रखा और महामारी के दौरान आर्थिक तंगी से जूझ रहा एक न्यूज़ आर्गेनाइजेशन को दिखाया। कहानी को इस तरह दिखने का तरीका काफी काबिले तारीफ था। मीडिया जगत को अंदर से थोड़ा बहुत भी जानना किसी के लिए एक्साइटिंग हो सकता है। इस कहानी में टिकर, पीसीआर, प्राइम टाइम, वर्क फ्रॉम होम, शब्दों का इस्तेमाल भी देखने को मिलता है। जो किसी भी मीडिया इंडस्ट्री को आमतौर पर आम जनता से जोड़ने के लिए बहुत अच्छा एग्जांपल है।

 

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