India News (इंडिया न्यूज), Pahalgam terror attack: पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। पहलगाम में हुए हमले को लेकर पूरे देश में गुस्से का माहौल है और भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ सख्त कदम उठाए हैं। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है, जिसके बाद परमाणु हथियारों को लेकर भी चर्चा तेज हो गई है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे देश के बारे में बताने जा रहे हैं, जो परमाणु शक्ति तो था, लेकिन उसने खुद ही अपने परमाणु हथियारों को नष्ट कर दिया।

अपने परमाणु हथियारों को कर दिया नष्ट

दुनिया में एक ऐसा देश भी था, जिसने कई परमाणु हथियारों को बनाने के बाद उन्हें खुद ही नष्ट कर दिया था। यह देश एक गुप्त परियोजना पर काम कर रहा था और उसने परमाणु हथियार हासिल कर लिए थे। 24 मार्च 1993 को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति एफ.डब्ल्यू. डी क्लार्क ने खुलासा किया कि यह देश दक्षिण अफ्रीका है, जिसने गुप्त रूप से छह परमाणु बम बनाए थे। लेकिन अब वे नष्ट हो चुके हैं।

1948 में इस देश ने परमाणु ऊर्जा बोर्ड का गठन किया और परमाणु ऊर्जा पर काम करना शुरू किया। 1960 में प्रिटोरिया के पास पेलिंडाबा नाम की एक परमाणु सुविधा बनाई गई थी। दक्षिण अफ्रीका में बहुत सारा यूरेनियम था, जिससे परमाणु बम आसानी से बनाए जा सकते थे। 1974 में एक रिपोर्ट में बताया गया कि दक्षिण अफ्रीका बम बना सकता है, तब सरकार ने एक गुप्त योजना शुरू की।

दक्षिण अफ्रीका ने 1982 में अपना पहला परमाणु हथियार बनाया और कुल 6 हथियार बनाए गए और उनकी ताकत लगभग हिरोशिमा और नागासाकी जैसे बमों जितनी ही थी। लेकिन उन पर कोई परीक्षण नहीं किया गया। हालांकि विशेषज्ञों का मानना ​​है कि उन्होंने पूरी तरह से काम किया। लेकिन अंततः अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियाँ बदल गईं। इन परिस्थितियों में परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध न केवल आवश्यक हो गया, बल्कि यह दक्षिण अफ्रीका के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए भी एक समस्या बन गया।

परमाणु हथियारों को नष्ट करने की वजह

बदलते अंतरराष्ट्रीय हालात और परमाणु हथियारों को नष्ट करने के पीछे कई कारण थे। उदाहरण के लिए, अमेरिका ने दक्षिण अफ्रीका के साथ परमाणु हथियारों से जुड़ी सूचनाओं के आदान-प्रदान पर प्रतिबंध लगा दिया था। 1978 में अमेरिका ने एक कानून पारित किया था, जिसके तहत उन देशों को परमाणु तकनीक नहीं दी जा सकती थी जो एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) का हिस्सा नहीं थे। शीत युद्ध के दौरान दुनिया दो हिस्सों में बंटी हुई थी और दक्षिण अफ्रीका को उस दौर की दो महाशक्तियों अमेरिका और रूस में से किसी का भी समर्थन नहीं था।

इसके साथ ही 1977 में जब दक्षिण अफ्रीका भूमिगत परमाणु परीक्षण की तैयारी कर रहा था, तो अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर उसे रोक दिया था। इसके अलावा अपनी रंगभेद नीति के कारण दक्षिण अफ्रीका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ गया था और उस पर हथियार खरीदने पर प्रतिबंध लगाए जा रहे थे। साथ ही किसी हमले की स्थिति में उनका देश विदेशी मदद पर निर्भर नहीं रह सकता था।

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ऐसे में जब 1989 में डी क्लार्क सत्ता में आए, तो उन्होंने परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगानी शुरू कर दी। इसमें बनाए जा चुके बमों को नष्ट करना और परमाणु संयंत्रों को बंद करना भी शामिल था। इसे इस स्तर पर लाया गया कि इससे बम नहीं बनाए जा सकें। इसके साथ ही सरकार ने एनपीटी का हिस्सा बनने की प्रक्रिया शुरू कर दी। देश में आंतरिक राजनीतिक सुधार भी शुरू हो गए और रंगभेद को खत्म कर दिया गया।

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