India News (इंडिया न्यूज), Climate Scientist Prof James Hansen: वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन अब नियंत्रण से बाहर हो रहा है और ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य अब संभव नहीं लगता। प्रसिद्ध जलवायु वैज्ञानिक जेम्स हैनसेन के नेतृत्व में तैयार की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि धरती की जलवायु पहले की तुलना में कहीं अधिक संवेदनशील है। यह रिपोर्ट ‘पर्यावरण: सतत विकास के लिए विज्ञान और नीति’ पत्रिका में प्रकाशित हुई है। इसके अनुसार, बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के कारण धरती तेजी से गर्म हो रही है और स्थिति बदतर होती जा रही है।

समुद्री जहाजों से होने वाला प्रदूषण भी एक बड़ा कारण

रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात भी सामने आई है। जहाजों से होने वाला एरोसोल प्रदूषण सूरज की रोशनी को रोककर ग्लोबल वार्मिंग को धीमा करता था, लेकिन हाल ही में यह प्रदूषण कम हुआ है, जिससे तापमान और भी तेजी से बढ़ रहा है। यह एक अनपेक्षित प्रभाव है, जिसने जलवायु संकट को और गंभीर बना दिया है।

‘दो डिग्री का लक्ष्य अब खत्म हो चुका है’

जेम्स हैनसेन, जो पहले नासा के शीर्ष जलवायु वैज्ञानिक रह चुके हैं, ने 1988 में अमेरिकी संसद में यह कहकर हलचल मचा दी थी कि ग्लोबल वार्मिंग शुरू हो चुकी है। अब वे और उनकी टीम कह रही है कि संयुक्त राष्ट्र जलवायु समिति (आईपीसीसी) द्वारा तापमान को दो डिग्री सेल्सियस के भीतर सीमित रखने का परिदृश्य अब असंभव है।

आगे क्या होने वाला है?

रिपोर्ट का दावा है कि 2045 तक वैश्विक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुंच सकता है। अगले 20-30 सालों में ध्रुवीय बर्फ के तेजी से पिघलने से समुद्री धाराओं पर असर पड़ेगा। अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन (एएमओसी) बंद होने की कगार पर है, जिससे दुनिया के मौसम चक्र में भारी उथल-पुथल हो सकती है। समुद्र का स्तर कई मीटर तक बढ़ सकता है, जिससे तटीय शहरों के डूबने का खतरा बढ़ सकता है।

अब क्या किया जा सकता है?

वर्ष 2015 की पेरिस जलवायु संधि के तहत दुनिया के देशों ने तय किया था कि औद्योगिक युग से पहले के मुकाबले तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि नहीं होने दी जाएगी। लेकिन यूरोपीय संघ की जलवायु निगरानी प्रणाली कोपरनिकस के हालिया आंकड़ों के अनुसार यह लक्ष्य पहले ही पार हो चुका है।

रिपोर्ट के लेखकों ने माना है कि उनके निष्कर्ष डरावने हैं, लेकिन उनका यह भी मानना ​​है कि वास्तविकता से भागने के बजाय इसे स्वीकार करना और तत्काल कार्रवाई करना बेहतर है। वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि अगर तत्काल और कठोर कदम उठाए जाएं तो स्थिति में सुधार हो सकता है।

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क्या अब भी उम्मीद बाकी है?

इस भयावह तस्वीर के बावजूद लेखकों ने आशावादी रुख अपनाया है। उनका कहना है कि अब समय आ गया है कि विशेष हितों को किनारे रखकर ठोस जलवायु नीतियों को लागू किया जाए। हमें अपने ऊर्जा स्रोतों में तेजी से बदलाव करना होगा, जीवाश्म ईंधन पर अपनी निर्भरता खत्म करनी होगी और हरित ऊर्जा को प्राथमिकता देनी होगी।

कुल मिलाकर बात यह है कि इस रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि हमारे पास बहस के लिए समय नहीं बचा है। हमें अपनी धरती को बचाने के लिए निर्णायक कदम उठाने होंगे, अन्यथा आने वाली पीढ़ियों को भयावह भविष्य का सामना करना पड़ेगा। अब सवाल यह नहीं है कि क्या जलवायु परिवर्तन हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है, बल्कि यह है कि क्या हम इसे रोकने के लिए तैयार हैं?

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