India News (इंडिया न्यूज),  Sambhiji Maharaj: संभाजी महाराज पर बनी बॉलीवुड अभिनेता विक्की कौशल की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘छावा’ जल्द ही रिलीज होने वाली है। यह ऐतिहासिक फिल्म मराठा योद्धा छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के सबसे बड़े पुत्र थे। फिल्म में विक्की कौशल ने संभाजी महाराज की भूमिका निभाई है, जबकि अभिनेत्री रश्मिका मंदाना उनकी पत्नी महारानी येसुबाई के किरदार में नजर आएंगी।

संभा जी बने शिवाजी के योग्य उत्तराधिकारी

छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 को महाराष्ट्र के पुरंदर किले में हुआ था। उनकी माता महारानी सईबाई थीं, जो शिवाजी महाराज की मुख्य पत्नी थीं। शिवाजी महाराज की तरह संभाजी भी बचपन से ही वीरता और प्रशासनिक कौशल में निपुण थे। संभाजी महाराज को अपने पिता की तरह एक महान योद्धा, रणनीतिकार और कुशल प्रशासक माना जाता है। 1681 में शिवाजी की मृत्यु के बाद, उन्होंने अपने छोटे सौतेले भाई राजाराम महाराज के साथ सत्ता के लिए संघर्ष किया और मराठा सिंहासन पर विराजमान हुए।

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मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष

संभाजी महाराज के शासनकाल में मराठा साम्राज्य को कई शक्तिशाली दुश्मनों से लड़ना पड़ा। उन्होंने मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ लगातार युद्ध किए और कई महत्वपूर्ण किलों की रक्षा की। मराठा नौसेना को मजबूत करने का श्रेय भी संभाजी महाराज को दिया जाता है। उनके शासन के दौरान मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण भारत में मराठा शक्ति को समाप्त करने का प्रयास किया, लेकिन संभाजी महाराज ने अपनी साहसिक युद्धनीति से उसे कड़ी टक्कर दी।

राजनीतिक गठबंधन के तहत हुआ विवाह

संभाजी महाराज का विवाह येसुबाई से हुआ था, जो पिलाजी शिर्के की पुत्री थीं। यह विवाह एक राजनीतिक रणनीति के तहत हुआ, जिससे शिवाजी महाराज को कोंकण तटीय क्षेत्र तक अपनी पकड़ मजबूत करने में मदद मिली। संभाजी और येसुबाई के दो संतानें थीं, बेटी भवानी बाई और बेटा शाहू प्रथम, जो बाद में मराठा साम्राज्य के छत्रपति बने।

कैसे हुआ संभाजी महाराज का बलिदान?

संभाजी महाराज की वीरता और बहादुरी से औरंगजेब अत्यधिक क्रोधित था। 1689 में जब वे संगमेश्वर में थे, तब एक गद्दार गणोजी शिर्के की मदद से मुगलों ने उन्हें धोखे से बंदी बना लिया। औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने का आदेश दिया, लेकिन संभाजी महाराज ने धर्म परिवर्तन से इनकार कर दिया। इसके बाद, उन्हें 40 दिनों तक अमानवीय यातनाएं दी गईं। इनकी जीभ काट ली गयी, आखें निकाल कर फोड़ दी गईं और शरीर के हजारों टुकड़े कर दिए गए। 11 मार्च 1689 को, उन्हें क्रूरतापूर्वक हत्या कर दिया गया। संभाजी महाराज की इस बलिदान गाथा ने मराठा योद्धाओं में नया जोश भर दिया, जिससे मुगलों के खिलाफ प्रतिरोध और तेज हो गया।

मराठा साम्राज्य पर प्रभाव

संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, मराठा साम्राज्य कुछ समय के लिए अस्थिर हो गया। उनके छोटे सौतेले भाई राजाराम महाराज ने सत्ता संभाली और राजधानी को जिंजी (तमिलनाडु) स्थानांतरित कर दिया। कुछ ही समय बाद, रायगढ़ किला मुगलों के कब्जे में चला गया। संभाजी महाराज की विधवा येसुबाई और 7 वर्षीय पुत्र शाहू को मुगलों ने बंदी बना लिया। शाहू को 18 वर्षों तक मुगल कैद में रखा गया, लेकिन बाद में उन्हें रिहा कर दिया गया और उन्होंने मराठा साम्राज्य की बागडोर संभाली। संभाजी महाराज न केवल एक शूरवीर योद्धा थे, बल्कि एक साहित्य प्रेमी और विद्वान भी थे। उन्होंने संस्कृत भाषा में कई महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे, जिनमें ‘बुद्धभूषणम’ प्रमुख है। इसके अलावा, उन्होंने ‘नायिकाभेद’, ‘सातशतक’ और ‘नखशिखा’ जैसी कृतियां भी लिखीं। उनकी रचनाएं राजनीति, युद्धनीति और प्रशासनिक दक्षता पर केंद्रित थीं।

संभाजी महाराज का बलिदान

इतिहासकार वायजी भावे के अनुसार, संभाजी महाराज की निर्दयतापूर्वक हत्या के बाद मराठाओं में नई ऊर्जा और क्रोध पैदा हुआ। उनके बलिदान ने मराठाओं को और संगठित किया और मुगलों के खिलाफ संघर्ष को और अधिक प्रबल बना दिया। छत्रपति संभाजी महाराज की कहानी साहस, बलिदान और अदम्य इच्छाशक्त का प्रतीक है। बॉलीवुड फिल्म छावा इस महान योद्धा की गाथा को बड़े पर्दे पर जीवंत करने का प्रयास कर रही है। हालांकि, फिल्म को लेकर कुछ विवाद भी उठे हैं, लेकिन इससे इतिहास के इस महानायक की वीरता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। संभाजी महाराज का जीवन एक प्रेरणा है और उनका बलिदान हमेशा याद किया जाएगा।

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