India News (इंडिया न्यूज), Story Of Ashwatthama: भारत में एक ऐसी रहस्यमयी कहानी आज भी सुनाई जाती है, जो समय की सीमाओं को लांघते हुए हर युग में चर्चा का विषय बनी रहती है। यह कथा है महाभारतकालीन योद्धा अश्वत्थामा की, जिनकी आयु आज के समय में भी 5,200 वर्षों से अधिक मानी जाती है। कहा जाता है कि भगवान शिव के परमभक्त अश्वत्थामा आज भी धरती पर जीवित हैं और कलियुग के अंत में भगवान विष्णु के कल्कि अवतार के साथ अंतिम युद्ध में शामिल होंगे।

महाभारत के योद्धा और द्रोणाचार्य के पुत्र

अश्वत्थामा, महाभारत के महान योद्धा और गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र थे। बचपन से ही वे धनुर्विद्या और युद्ध कौशल में पारंगत थे। महाभारत के युद्ध में उन्होंने कौरवों की ओर से युद्ध किया और पिता के साथ मिलकर पांडवों की सेना को भारी हानि पहुँचाई। लेकिन युद्ध के दौरान एक कूटनीति के तहत युधिष्ठिर द्वारा अश्वत्थामा की मृत्यु का भ्रम फैलाया गया, जिससे व्याकुल होकर द्रोणाचार्य ने शस्त्र त्याग दिया और उनका वध धृष्टद्युम्न ने कर दिया। पिता की मृत्यु से व्याकुल अश्वत्थामा ने प्रतिशोध की भावना में पांडव पुत्रों की हत्या कर दी। क्रोध में आकर उन्होंने अभिमन्यु की गर्भवती पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने परीक्षित की रक्षा की और अश्वत्थामा को श्राप दिया कि वह युगों-युगों तक पृथ्वी पर भटकते रहेंगे, साथ ही उनकी मणि भी छीन ली गई, जिससे वे तेजहीन हो गए।

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आज भी जीवित है अश्वत्थामा?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अश्वत्थामा आज भी जीवित हैं। मध्य प्रदेश के महू के पास विंध्याचल की पहाड़ियों में स्थित खोदरा महादेव को उनकी तपोभूमि माना जाता है। स्थानीय निवासियों का मानना है कि वे आज भी इस क्षेत्र में दर्शन देने आते हैं। इसी प्रकार, बुरहानपुर के किले में स्थित एक रहस्यमयी तालाब है जो तपती गर्मी में भी नहीं सूख सकता उसे अश्वत्थामा की उपस्थिति का एक प्रमाण माना जाता है। यहां के गुप्तेश्वर महादेव मंदिर में प्रतिदिन ताजा फूल और गुलाल चढ़ा मिलता है, जिसे स्थानीय लोग अश्वत्थामा की भक्ति का चिन्ह मानते हैं। कानपुर के शिवराजपुर स्थित एक शिव मंदिर में भी कुछ श्रद्धालुओं ने अश्वत्थामा के दर्शन होने का दावा किया है।

भविष्य में भगवान कल्कि के साथ लड़ेंगे युद्ध

भविष्य पुराण के अनुसार, जब कलियुग अपने चरम पर होगा और मानवता अधर्म में डूब जाएगी, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार लेकर धरती पर प्रकट होंगे। इस महासंग्राम में अश्वत्थामा भी कल्कि के साथ अधर्म का नाश करने के लिए युद्ध में शामिल होंगे। माना जाता है कि अश्वत्थामा को जब तक अपने अधर्म का प्रायश्चित नहीं हो जाता और वे धर्मयुद्ध में भाग लेकर मोक्ष प्राप्त नहीं कर लेते, तब तक उन्हें धरती पर भटकते रहना है।

द्वापर युग से आज तक का सफर

धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, अश्वत्थामा का जन्म द्वापर युग में हुआ था। उस समय मनुष्यों की औसत आयु लगभग 1000 वर्ष मानी जाती थी। कलियुग की शुरुआत 3102 ईसा पूर्व मानी जाती है और तब से अब तक लगभग 5,200 वर्ष बीत चुके हैं। इस गणना के आधार पर, अश्वत्थामा की वर्तमान आयु भी 5,200 वर्ष से अधिक मानी जाती है।

रहस्य और आस्था का अद्भुत संगम

अश्वत्थामा का अस्तित्व आस्था और रहस्य का अद्भुत संगम है। जहां एक ओर आधुनिक विज्ञान इस प्रकार के दावों को सच नहीं मानता, वहीं दूसरी ओर सनातन धर्म के लोग इसे श्रद्धा और विश्वास मानते हैं। चाहे वे बुरहानपुर के किले की गुप्त सुरंगों में हों या विंध्याचल की तपोभूमि पर, अश्वत्थामा की कहानी भारतीय संस्कृति में आज भी अमर है। एक ऐसे योद्धा की कथा, जो धर्म की रक्षा के लिए काल के पार आज भी भटक रहा है।

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