India News (इंडिया न्यूज), Thermonuclear Bomb: दुनिया के सबसे खतरनाक हथियारों में से एक है थर्मोन्यूक्लियर बम, जिसे आमतौर पर हाइड्रोजन बम कहा जाता है। इसकी ताकत इतनी जबरदस्त होती है कि यह महज कुछ सेकंड में पूरे शहर को खाक में मिला सकता है। परमाणु बम के मुकाबले कई गुना ज्यादा शक्तिशाली यह बम न सिर्फ तत्काल विनाश करता है, बल्कि इसकी रेडिएशन पीढ़ियों तक असर छोड़ती है।
कैसे काम करता है हाइड्रोजन बम?
हाइड्रोजन बम दो चरणों में काम करता है। पहला स्टेप फिशन यानी भारी तत्वों जैसे यूरेनियम-235 या प्लूटोनियम-239 के विघटन से शुरू होता है, जो एक छोटा परमाणु बम विस्फोट करता है। यह विस्फोट इतना तापमान और दबाव पैदा करता है कि दूसरा स्टेप फ्यूजन शुरू होता है। फ्यूजन में हाइड्रोजन के दो रूप, ड्यूटेरियम और ट्रिटियम आपस में मिलकर हीलियम बनाते हैं और इस प्रक्रिया में अकल्पनीय मात्रा में ऊर्जा निकलती है। यही प्रक्रिया सूरज में होती है, लेकिन बम में इसका प्रयोग नियंत्रित न होकर विनाशकारी होता है।
कितनी विनाशक है इसकी ताकत?
हिरोशिमा पर गिराया गया ‘लिटिल बॉय’ बम 15 किलोटन का था, जबकि रूस ने 1961 में ‘त्सार बोम्बा’ का परीक्षण किया, जिसकी शक्ति 50 मेगाटन यानी 50 लाख टन टीएनटी के बराबर थी। यह परमाणु बम से 3,300 गुना ज्यादा ताकतवर था। त्सार बोम्बा का प्रभाव इतना जबरदस्त था कि इसके विस्फोट से 1,000 किमी दूर तक खिड़कियों के कांच टूट गए थे और 64 किमी ऊंचा मशरूम क्लाउड बना था। इस बम से 55 किमी तक के पेड़ जल गए थे और 100 किमी की दूरी तक हीट वेव से तबाही हुई थी।
रेडिएशन से होती है लंबी तबाही
हाइड्रोजन बम में निकलने वाला विकिरण तीन तरह से नुकसान पहुंचाता है, तुरंत रेडिएशन, रेडियोधर्मी कणों का फॉलआउट, और दीर्घकालिक प्रभाव। विस्फोट के समय गामा किरणें और न्यूट्रॉन जैसे आयनकारी विकिरण 3-5 किमी के दायरे में जीवों को तत्काल खत्म कर सकते हैं। वहीं, रेडियोधर्मी कण हवा, बारिश और मिट्टी के जरिए सैकड़ों किमी दूर तक फैल जाते हैं। ये कैंसर, जेनेटिक बीमारियां और ल्यूकेमिया जैसी समस्याएं पैदा कर सकते हैं। मिट्टी और पानी को यह सालों तक जहरीला बना देते हैं।
इतिहास में दर्ज सबसे खतरनाक परीक्षण
1954 में अमेरिका के ‘कैसल ब्रावो’ परीक्षण (15 मेगाटन) ने मार्शल आइलैंड्स को रेडियोधर्मी कचरे में तब्दील कर दिया था। इस परीक्षण का असर स्थानीय जनसंख्या और पर्यावरण पर दशकों तक देखा गया।
किन देशों के पास हैं ऐसे हथियार?
- थर्मोन्यूक्लियर बम बनाना तकनीकी रूप से बेहद जटिल और महंगा है, इसलिए यह सिर्फ कुछ देशों के पास है।
- अमेरिका पहला टेस्ट 1952 (आइवी माइक)। 3,708 परमाणु हथियार, जिनमें कई हाइड्रोजन बम शामिल हैं।
- रूस पहला टेस्ट 1955, सबसे शक्तिशाली ‘त्सार बोम्बा’। 4,380 परमाणु हथियार।
- यूके 1957 में पहला परीक्षण, कुल 225 हथियार, ट्राइडेंट मिसाइल से लैस।
- चीन1967 में हाइड्रोजन बम टेस्ट, लगभग 500 हथियार।
- फ्रांस 1968 में पहला टेस्ट, लगभग 290 हथियार।
- उत्तर कोरिया 2017 में थर्मोन्यूक्लियर बम का दावा, तकनीकी रूप से सीमित।
- भारत 1998 में पोखरण-2 के दौरान हाइड्रोजन बम का दावा, आधिकारिक पुष्टि नहीं।
- पाकिस्तान लगभग 170 परमाणु हथियार, हाइड्रोजन बम की पुष्टि नहीं।
- इजरायल 90 परमाणु हथियारों का अनुमान लगाया गया है।
अगर ऐसा बम शहर में फटे तो?
अगर कोई 50 मेगाटन का बम किसी बड़े शहर, जैसे न्यूयॉर्क या टोक्यो में फटता है, तो लाखों लोग एक झटके में खत्म हो सकते हैं। बचने वाले लोग रेडिएशन, जलन, बीमारियों और संसाधनों की कमी से जूझेंगे। विस्फोट होने के बाद 30 किमी तक सब कुछ राख हो जाएगा। लगभग 100 किमी की दूर तक जलन व आग फैलेगी।
इसका फॉलआउट पूरी दुनिया में फैलने का खतरा है। ओजोन परत को नुकसान पहुंचाकर क्लाइमेट चेंज को और तेज कर देगा।
क्यों डरावना है हाइड्रोजन बम का भविष्य?
आज भले ही परमाणु हथियारों को नियंत्रित करने की अंतरराष्ट्रीय कोशिशें जारी हैं, लेकिन तकनीक का विकास इसे और खतरनाक बना रहा है। अब बम छोटे लेकिन ज्यादा प्रभावशाली बनाए जा रहे हैं। रूस और अमेरिका जैसे देशों के पास ऐसे हथियार हैं, जो अपने टारगेट पर सटीक और तेज़ हमला कर सकते हैं। ऐसे में सवाल यही है कि क्या इंसान इस ताकत को कभी जिम्मेदारी से इस्तेमाल करेगा? क्योंकि एक गलती से पूरी धरती पर तबाही का खतरा मंडरा सकता है।