India News(इंडिया न्यूज), Artificial Womb: क्या आपने कभी सोचा है कि बच्चे गर्भ के बाहर भी विकसित हो सकते हैं? सुनने में अजीब लगता है। लेकिन वैज्ञानिक इस असंभव तरीके को संभव बनाने में लगे हुए हैं। वैज्ञानिकों द्वारा बनाई गई इस तकनीक को ‘कृत्रिम गर्भ’ कहा जाता है, जो गर्भधारण से लेकर बच्चे के जन्म तक की प्रक्रिया को बिना गर्भधारण के पूरा कर सकती है। यह विचार पहले साइंस फिक्शन की कहानी जैसा लगता था, लेकिन अब यह हकीकत बनने की राह पर है। कृत्रिम गर्भाशय महिलाओं के गर्भाशय के सभी कार्यों को दोहराने में सक्षम है। यह विकसित हो रहे भ्रूण को ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्रदान करता है। तस्वीर में देखा जा सकता है कि मेमनों को सहारा देने के लिए एक प्रायोगिक कृत्रिम गर्भ का परीक्षण किया जा रहा है।
कृत्रिम गर्भाशय
कृत्रिम गर्भाशय का मुख्य उपयोग समय से पहले जन्मे बच्चों को सहारा देना है, जो ज्यादातर मामलों में जीवित नहीं रह पाते। परीक्षणों में शोधकर्ताओं ने दिखाया है कि कृत्रिम गर्भाशय में रखे गए समय से पहले जन्मे मेमनों ने न केवल जीवन बचाया, बल्कि उनका वजन भी बढ़ा और बाल भी बढ़े। हालांकि ज्यादातर लोग इस तकनीक को लेकर संशय में हैं, लेकिन जेन जेड पीढ़ी इसे खुले दिल से अपनाने के लिए तैयार है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 18 से 24 वर्ष की आयु के 42% युवाओं ने कहा कि वे ‘महिला के शरीर के बाहर भ्रूण को विकसित करने’ के पक्ष में हैं। यह सर्वेक्षण थिंक टैंक ‘थियोस’ द्वारा किया गया था, जिसमें 2,292 लोगों से उनके विचार पूछे गए थे। सर्वेक्षण के परिणाम बताते हैं कि अधिकांश लोग इस तकनीक के खिलाफ हैं, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहां यह मां या बच्चे की जान बचा सकती है।
क्रांतिकारी कदम हो सकती है तकनीक
कुछ लोगों का मानना है कि यह तकनीक महिलाओं के लिए एक क्रांतिकारी कदम हो सकती है, जो उन्हें गर्भावस्था के शारीरिक और भावनात्मक बोझ से मुक्त कर सकती है। लेकिन कुछ आलोचकों का कहना है कि यह तकनीक ‘महिलाओं के अस्तित्व के लिए खतरा’ बन सकती है। आपको बता दें कि एक सामान्य गर्भावस्था में भ्रूण 37 से 40 सप्ताह तक मां के गर्भ में विकसित होता है। इस दौरान बच्चे के फेफड़े एमनियोटिक द्रव से भरे होते हैं और उसे मां की नाल के जरिए ऑक्सीजन और पोषक तत्व मिलते हैं। कृत्रिम गर्भाशय का उद्देश्य इन सभी प्रक्रियाओं को तकनीकी तरीके से दोहराना है, जहां बच्चे को एक बैग में रखा जाएगा और कृत्रिम नाल के जरिए उसे पोषक तत्व दिए जाएंगे। इस प्रक्रिया को ‘एक्टोजेनेसिस’ कहते हैं, जिसका मतलब है शरीर के बाहर किसी जीव का विकास।
हालांकि, यह तकनीक अभी संभव नहीं है, लेकिन भविष्य में यह मां के गर्भाशय की जगह ले सकती है। सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 21% लोग इस विचार के पक्ष में थे, जबकि 52% इसके खिलाफ थे। धार्मिक लोगों के बीच इस विचार को कम समर्थन मिला और महिलाएं पुरुषों की तुलना में कृत्रिम गर्भाशय के इस्तेमाल के पक्ष में कम थीं। थियोस के निदेशक चाइन मैकडोनाल्ड का कहना है कि लोग गर्भावस्था और जन्म के अनुभव को बहुत महत्व देते हैं और जीवन-रक्षक स्थितियों को छोड़कर इस प्रक्रिया में तकनीकी रुकावट का विरोध करते हैं।