India News(इंडिया न्यूज़),Dacoit Kusuma Nain Death: कुख्यात डकैत कुसुमा नाइन का अंत हो गया। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में आतंक का पर्याय रही इस खूंखार महिला डकैत ने केजीएमयू में आखिरी सांस ली। वह लंबे समय से टीबी जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थी और इटावा जेल में 20 वर्षों से सजा काट रही थी। शनिवार शाम इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई, जिसके बाद पोस्टमार्टम कर शव को परिवारीजनों को सौंप दिया गया। उसकी मौत की खबर से जहां एक ओर उसके परिजनों में शोक था, वहीं पीड़ित परिवारों ने खुशी जाहिर करते हुए लड्डू बांटे और घी के दीप जलाए।

डकैत फक्कड़ की सहयोगी, 200 से ज्यादा अपराधों में थी शामिल

जालौन जिले के सिरसाकलार की रहने वाली कुसुमा नाइन मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीहड़ों में दशकों तक दहशत का दूसरा नाम बनी रही। वह कुख्यात डकैत रामआसरे उर्फ फक्कड़ की खास सहयोगी थी। उसके गिरोह ने 200 से अधिक अपराध उत्तर प्रदेश में और 35 से ज्यादा अपराध मध्य प्रदेश में किए थे। 2004 में उसका गिरोह मध्य प्रदेश के दमोह पुलिस थाने की रावतपुरा चौकी पर समर्पण कर चुका था। लेकिन इससे पहले उसने कई ऐसे अपराध किए, जिनकी बर्बरता सुनकर रूह कांप जाए।

15 मल्लाहों की लाइन में खड़ा कर कर दी थी हत्या

1981 में फूलन देवी के बेहमई कांड के बाद बदले की आग में जल रही कुसुमा ने 1984 में 15 मल्लाहों को लाइन से खड़ा कर गोली मार दी थी और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया था। यही नहीं, 1996 में इटावा जिले के भरेह इलाके में उसने संतोष और राजबहादुर नाम के दो मल्लाहों की आंखें निकाल ली थीं और उन्हें जिंदा छोड़ दिया था।

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क्रूरता के लिए जानी जाती थी ‘यमुना-चंबल की शेरनी’

कुसुमा नाइन की दरिंदगी का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जिन लोगों को वह अगवा करती थी, उनके साथ बेहद अमानवीय बर्ताव करती थी। जलती लकड़ी से बदन जलाना, जंजीरों से बांधकर हंटर से पीटना उसके खौफनाक तरीकों में शामिल था। उसकी क्रूरता के कारण ही डकैत उसे ‘यमुना-चंबल की शेरनी’ कहकर बुलाने लगे थे।

मौत पर जलाए गए दीये

कुसुमा नाइन के आतंक से पीड़ित परिवार उसकी मौत की खबर सुनकर जश्न मना रहे हैं। इटावा के असेवा गांव में संतोष नामक शख्स ने बताया कि 1996 में कुसुमा के गिरोह ने उसके और राजबहादुर के साथ बेरहमी से मारपीट कर उनकी आंखें फोड़ दी थीं। घटना के विरोध में गांव के लोगों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। आज उसकी मौत की खबर सुनकर पीड़ित परिवारों ने गांव में घी के दीप जलाए और लड्डू बांटे। बीहड़ों पर दशकों तक राज करने वाली इस खूंखार डकैत का अंत अब हो चुका है। लेकिन उसके द्वारा किए गए अपराधों की कहानियां अभी भी लोगों के दिलों में खौफ बनकर जिंदा हैं।

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