India News (इंडिया न्यूज),Dihuli Hatyakand Verdict Today: उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के दिहुली गांव में 44 साल पहले हुए दलित हत्याकांड पर मंगलवार को अदालत का ऐतिहासिक फैसला आया। 18 नवंबर 1981 की उस भयावह रात को डकैतों के एक गिरोह ने गांव पर हमला कर 24 दलितों की नृशंस हत्या कर दी थी। इस जघन्य कांड के 44 साल बाद, अदालत ने तीन आरोपियों—कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल—को दोषी करार दिया। 18 मार्च को उन्हें सजा सुनाई जाएगी।

डकैतों ने क्यों किया था हमला?

यह हत्याकांड उस समय हुआ जब दस्यु गिरोह के दो सदस्यों की गिरफ्तारी हुई थी। गिरोह को संदेह था कि दलितों के गांव से ही मुखबिरी की गई थी, जिसके चलते उनके साथी पकड़े गए। बदला लेने के लिए हथियारबंद डकैतों ने सुबह पांच बजे गांव पर हमला कर दिया और जो सामने आया, उसे बेरहमी से गोलियों से भून डाला। इस हमले में कई महिलाएं और बच्चे भी मारे गए। इसके बाद गांव में हाहाकार मच गया और पूरे उत्तर प्रदेश में आक्रोश फैल गया।

इंदिरा गांधी का गांव दौरा, दलितों का पलायन

इस वीभत्स हत्याकांड ने देश की राजनीति को झकझोर कर रख दिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने घटना के एक हफ्ते बाद 22 नवंबर 1981 को दिहुली गांव का दौरा किया था। उनके साथ केंद्रीय गृहमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री वीपी सिंह भी पहुंचे थे। उन्होंने पीड़ित परिवारों को सुरक्षा और न्याय का भरोसा दिलाया। लेकिन इस घटना के बाद गांव में इतनी दहशत फैल गई कि दलितों ने पलायन करना शुरू कर दिया। पुलिस प्रशासन ने स्थिति को संभालने के लिए गांव में लंबा कैंप किया और एक स्थायी पुलिस चौकी स्थापित की गई।

44 साल तक अदालत में लड़ा गया इंसाफ का संघर्ष

1981 में जब यह मामला दर्ज हुआ, तब यह मैनपुरी जिले के तहत आता था। 1984 में हाईकोर्ट के आदेश पर केस को इलाहाबाद सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। मुकदमे की सुनवाई सालों तक चली, लेकिन पीड़ितों को बार-बार गवाही के लिए दूसरे जिले जाना पड़ता था। अंततः 2024 में अदालत ने इस मामले में तीन आरोपियों को दोषी करार दिया।

तीन दोषी करार, कई आरोपी मर चुके

इस केस में कुल 17 आरोपी थे, लेकिन चार दशकों में इनमें से 13 की मौत हो चुकी है। अब अदालत ने बचे तीन आरोपियों—कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल—को हत्या, जानलेवा हमला और आपराधिक षड्यंत्र जैसी धाराओं में दोषी करार दिया है। वहीं, फरार आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना को भगोड़ा घोषित कर उसकी फाइल अलग कर दी गई है।

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पीड़ितों के आंसू अब भी सूखे नहीं

दिहुली गांव में जी मीडिया की टीम पहुंची, जहा पीड़ित परिवारों ने अपनी दर्दनाक दास्तां साझा की। कई बुजुर्गों ने बताया कि किस तरह उनके परिवार के दो, चार, यहां तक कि आठ सदस्य भी उस हमले में मारे गए थे। वर्षों बाद भी उनका दर्द कम नहीं हुआ है। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने पीड़ितों को मुआवजा और मुफ्त बिजली जैसी कई सुविधाएं देने का वादा किया था, लेकिन अधिकतर वादे आज तक अधूरे हैं। बुजुर्गों की आंखें आज भी भर आती हैं, जब वे उस खौफनाक रात को याद करते हैं।

अब न्याय की घड़ी आई

चार दशकों के इंतजार के बाद, अब जब अदालत ने दोषियों को करार दिया है, पीड़ित परिवारों को न्याय की उम्मीद जगी है। 18 मार्च को अदालत सजा सुनाएगी, जिससे इस ऐतिहासिक हत्याकांड में कानूनी प्रक्रिया पूरी होगी। लेकिन यह घटना भारतीय समाज में जातीय भेदभाव और अपराध की भयावहता की गवाही देती रहेगी।

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