India News (इंडिया न्यूज), Holi 2025: हिंदू पांचाग के अनुसार, माघ मास के बाद फाल्गुन मास शुरू होने जा रहा। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है और इसके अगले ही दिन होली का रंग खेला जाता है। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के बाद देशभर में होली मनाई जाएगी, लेकिन मथुरा में होली का त्योहार अभी से ही शुरू हो गया है।
मथुरा की ब्रज होली दुनियाभर में मशहूर
एक रिपोर्ट के अनुसार, इस बार ब्रज की होली खेलने के लिए 25 लाख से ज्यादा श्रद्धालु मथुरा आने वाले हैं। इसके लिए जिला प्रशासन की ओर से तैयारियां भी शुरू कर दी गई हैं। ब्रज की होली का क्रेज लोगों में साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। होली खेलने वाले श्रद्धालुओं की संख्या में हर साल इजाफा देखने को मिल रहा है। इस बार 25 से 27 लाख श्रद्धालु ब्रज की होली खेलने के लिए मथुरा पधारने वाले हैं। इसी के साथ श्री कृष्ण जन्मभूमि पर लट्ठमार होली का आयोजन किया जाएगा और वृंदावन में फूलों की होली मनाई जाएगी।
इस दिन खेली जाएगी होली
ज्योतिषों के अनुसार, इस बार फाल्गुन पूर्णिमा 13 मार्च को सुबह 10:35 बजे शुरू होगी। यह 14 मार्च को दोपहर 12:23 बजे तक रहने वाली है। ऐसे में मथुरा वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में 12 मार्च को होली खेली जाएगी। बरसाना में लट्ठमार होली 8 मार्च और नंदगांव में 9 मार्च को खेली का त्योहार मनाया जाएगा।
जानें, शुभ मुहूर्त और तिथि
होलिका दहन- 13 मार्च (गुरुवार)
होलिका दहन का शुभ मुहूर्त- 13 मार्च रात 11.26 से लेकर 12.30 तक
रंगवाली होली- 14 मार्च (शुक्रवार)
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि- 13 मार्च को सुबह 10: 35 मिनट पर शुरू होगी और 14 मार्च दोपहर 12: 23 मिनट पर खत्म होगी।
बांके बिहारी मंदिर इस दिन खेली जाएगी होली
वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में होली का त्योहार 12 मार्च को खेला जाएगा, तो वहीं बरसाना में लठ्ठमार होली 8 मार्च को और नंदगांव में 9 मार्च को खेली जाएगी।
जानें, क्यों मनाई जाती है रंगवाली होली?
आपने वो कहावत तो सुनी होगी… बुरा न मानो हाली है…. कहते हैं कि होली के रंग मन की कटुता को मिटाकर लोगों के अंगर प्रेम भर देता है। होली के रंग नीरस जीवन में रंग भरते हैं और जीवन में सकारात्मकता आती है। इसलिए लोग आपस के मतभेद को भुलाकर रंगों के इस त्योहार को एकसाथ मनाते हैं। इसी के साथ होली वाले दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाकर बधाई देते हैं।
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जानें, क्यों कहते हैं होली को ‘धुलेंडी’
प्राचीन काल में होली का त्योहार धुल से खेला जाता था। रंगों से होली खेलने का चलन तो बहुत बाद में आया है। कहते हैं कि श्रीहरि ने त्रैतायुग के प्रारंभ में धूलि वंदन किया था। धूल वंदन अर्थात लोग एक दूसरे पर धूल लगाते हैं, इसलिए इसे आज भी धुलेंडी के नाम से बुलाया जाता है।
ऐसे खेली जाती है ब्रज में होली
कहते हैं कि रंगवाली होली का त्यौहार भगवान श्री कृष्ण को काफी प्रिय था और यही वजह है कि देश-विदेश में भले ही होली धूमधाम से मनाई जाती हो, लेकिन ब्रज की होली की बात ही निराली है। ब्रज में होली 40 दिन तक मनाई जाती है, इसमें रंगों के अलावा फूलों, लड्डू, लठ्ठमार होली खेली जाती है।